शायरी (Shayari)

Wasim Barelvi Shayari

वसीम बरेलवी शायरी : वसीम जी बहुत प्रसिद्ध उर्दू और हिंदी के कवि है इनका जन्म 8 फरवरी 1940 में बरेली में हुआ था जीवन के अंतिम समय तक ये  बरेली कालेज, बरेली (रुहेलखंड विश्वविद्यालय) में उर्दू विभाग में प्रोफ़ेसर के रूप में कार्यरत है इनकी मृत्यु 5 फरवरी 2020 को हुई | वसीम ने आगरा यूनीवर्सिटी से एम-ए उर्दू किया | वसीम बरेलवी जी के द्वारा लिखी गयी कुछ ऐसी ही दिल छूने वाली शायरी बताते है की काबिले तारीफ है उनकी शायरियाँ प्यार के ऊपर है जिनको पढ़ कर लव की फीलिंग आती है तो जानिए उनके दो लाइन के शेर जो की प्रेरणादायक है |

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Waseem Barelvi Facebook

वसीम बरेलवी फेसबुक : अगर आप बरेलवी जी की मज़ेदार शायरी जानना चाहे तो हमारी नीचे दी हुई कुछ मज़ेदार शायरियां पढ़िए और आज ही शेयर करे अपने दोस्तों के साथ :

चराग़ घर का हो महफ़िल का हो कि मंदिर का
हवा के पास कोई मस्लहत नहीं होती

ग़म और होता सुन के गर आते न वो ‘वसीम’
अच्छा है मेरे हाल की उन को ख़बर नहीं

इन्हें तो ख़ाक में मिलना ही था कि मेरे थे
ये अश्क कौन से ऊँचे घराने वाले थे

इसी ख़याल से पलकों पे रुक गए आँसू
तिरी निगाह को शायद सुबूत-ए-ग़म न मिले

जहाँ रहेगा वहीं रौशनी लुटाएगा
किसी चराग़ का अपना मकाँ नहीं होता

झूट के आगे पीछे दरिया चलते हैं
सच बोला तो प्यासा मारा जाएगा

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Wasim Barelvi Shayari

Ek Sher Waseem Barelvi Urdu

एक शेर वसीम बरेलवी उर्दू : अगर आप उर्दू में वासिम बरेलवी जी के शेर जानना चाहे तो नीचे दी हुई जानकारी के अनुसार जान सकते है :

झूट वाले कहीं से कहीं बढ़ गए
और मैं था कि सच बोलता रह गया

जिस्म की चाह लकीरों से अदा करता है
ख़ाक समझेगा मुसव्विर तिरी अंगड़ाई को

जो मुझ में तुझ में चला आ रहा है बरसों से
कहीं हयात इसी फ़ासले का नाम न हो

किसी ने रख दिए ममता-भरे दो हाथ क्या सर पर
मिरे अंदर कोई बच्चा बिलक कर रोने लगता है

कोई इशारा दिलासा न कोई व’अदा मगर
जब आई शाम तिरा इंतिज़ार करने लगे

कुछ है कि जो घर दे नहीं पाता है किसी को
वर्ना कोई ऐसे तो सफ़र में नहीं रहता

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Wasim Barelvi Shayari MP3

वसीम बरेलवी शायरी एमपी 3 : यदि आप शायरियो को पसंद करते है तो नीचे दी हुई शायरियो को पढ़े और फेसबुक या वहसटप्प पर भी शेयर कर सकते है :

तहरीर से वर्ना मिरी क्या हो नहीं सकता
इक तू है जो लफ़्ज़ों में अदा हो नहीं सकता

तिरे ख़याल के हाथों कुछ ऐसा बिखरा हूँ
कि जैसे बच्चा किताबें इधर उधर कर दे

तुझे पाने की कोशिश में कुछ इतना खो चुका हूँ मैं
कि तू मिल भी अगर जाए तो अब मिलने का ग़म होगा

तुम आ गए हो तो कुछ चाँदनी सी बातें हों
ज़मीं पे चाँद कहाँ रोज़ रोज़ उतरता है

तुम मेरी तरफ़ देखना छोड़ो तो बताऊँ
हर शख़्स तुम्हारी ही तरफ़ देख रहा है

उन से कह दो मुझे ख़ामोश ही रहने दे ‘वसीम’
लब पे आएगी तो हर बात गिराँ गुज़रेगी

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