Vivah Panchami 2020 : पुराणों के अनुसार विवाह पंचमी का दिन हिन्दू धर्म के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण होता है इसी दिन भगवान विष्णु के अवतार भगवान राम व माता लक्ष्मी का अवतार माता सीता का विवाह संपन्न हुआ था | इसी ख़ुशी में हम इस त्यौहार को बहुत धूमधाम के साथ मनाते है यह त्यौहार सबसे अधिक नेपाल व भारत के अयोध्या में मनाया जाता है इसीलिए हम आपको इस दिन के बारे में जानकारी देते है की इस दिन की क्या कथा है ? और इस दिन क्या करना चाहिए ? किस तरह से यह त्यौहार मानना चाहिए ?
यहाँ भी देखे : कालभैरव जयंती – कालाष्टमी 2020
विवाह पंचमी कब है ?
Vivah Panchami Kab Hai : मार्गशीर्ष माह के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को भगवान राम और माता सीता का विवाह हुआ था इसीलिए इसी दिन को विवाह पंचमी के नाम से जाना जाता है | पौराणिक युग का सबसे भव्य स्वयंवर इसी दिन किया गया था जिसमे की भगवान राम ने माता सीता से शादी की थी इस साल यानि 2020 में विवाह पंचमी 23 नवम्बर के दिन होगी |
यहाँ भी देखे : वृश्चिक संक्रांति 2020
विवाह पंचमी कैसे मनाई जाती हैं
Vivah Panchami Kaise Manai Jati Hai : इस दिन को हिन्दू धर्म में एक उत्सव के रूप में मनाया जाता है इस दिन सभी मंदिरो में उत्सव मनाया जाता है भगवान राम जी के जीवन में उनकी लीलाओ पर कई तरह के नाटक प्रस्तुत किये जाते है | इसके अलावा भगवान राम ने मनुष्य जाति को मानव जीवन का पाठ पढ़ाने के लिए अवतार लिया था उसके बारे में बताया जाता है तथा विवाह पंचमी की कथा भक्तो को सुनाई जाती है |
यह त्यौहार सबसे अधिक नेपाल देश में मनाया जाता है क्योकि जहाँ माता जानकी यानि सीता मैया का जन्म हुआ यह वह नगरी मिथिला थी जो की अब नेपाल में है इसीलिए इस उत्सव को पुरे रीति-रिवाजो के साथ नेपाल में मनाया जाता है |
यहाँ भी देखे : Utpanna Ekadashi | Vrat Katha In Hindi
राम और सीता का विवाह | विवाह पंचमी की कथा
Ram Aur Sita Ka Vivah : जैसा की हम सभी जानते है की माता सीता व प्रभु श्रीराम जी का विवाह एक दूसरे से हुआ था लेकिन इसके पीछे की कथा को रामचरितमानस के महान कवि गोस्वामी तुलसीदास ने बड़ी ही सुंदरता के साथ दर्शाया है : माता सीता धरती की पुत्री थी क्योकि राजा दशरथ को वह जमीन खोदने पर प्राप्त हुई थी लेकिन इसके साथ-2 वह माँ लक्ष्मी का अवतार थी जो की भगवान विष्णु रूपी राम से विवाह करने के लिए पैदा हुई थी | राजा दशरथ ने ही माता सीता को पला और वह ही उनके पिता कहलाये एक बार राजा जनक देखा की उनकी पुत्री सीता ने भगवान शिव के धनुष को अपने नाजुक से हाथो में उठा लिए जिसे की आज तक भगवान परशुराम के अलावा कोई नहीं उठा सका |
उसके बाद राजा जनक ने निश्चय किया की वह अपनी पुत्री यानि सीता का विवाह उसे योग्य पुरुष से करेंगे जो की इस धनुष पर प्रत्यंचा चढ़ाएगा | उसके बाद उन्होंने अपने जनक महल में एक सभा बुलवाई जिसमे की माता सीता के स्वयंवर होने की घोषणा का एलान किया गया और उस स्वयंवर में बड़े से बड़े महारथी, राजा-महाराजा को न्योता भेजा गया | उसी के अनुसार वहां विश्वामित्र जी अपने शिष्यों राम व लक्ष्मण के साथ भी पहुँच गए जब वहां पर प्रतियोगिता शुरू हुई तो देखा गया की जितने भी महारथी वहां आये हुए है उनमे से किसी ने भी उस धनुष को उठाने का साहस नहीं था |
राजा जनक समझ गए की यह कार्य तो सबके लिए नामुमकिन लग रहा है तभी विश्वामित्र जी जो की भगवान राम जी के गुरु थे उन्होंने राम को आदेश दिया और स्वयंवर में हिस्सा लेने के लिए कहा | तब राम जी अपने गुरु की आज्ञानुसार धनुष के पास जाते है और भगवान शिव का ध्यान करके बड़े ही प्यार से उसे उठा कर एक भयंकर ध्वनि के साथ उस धनुष को तोड़ देते है और वहां हर तरफ जय श्री राम के नारे लगना प्रारम्भ हो जाते है | उसके बाद राजा जनक द्वारा राजा दशरथ को शादी के लिए न्योता भेजा जाता है जिसे की दशरथ जी द्वारा स्वीकार कर लिया जाता है और बड़ी ही धूमधाम के साथ प्रभु श्रीराम व माता सीता का विवाह किया जाता है तब से लेकर अब तक उस दिन को विवाह पंचमी के नाम से जाना जाता है |
Contents
