सोमवती अमावस्या 2020 इन हिंदी : भारत देश त्योहारों का देश है जिसमे की कई तरह के त्यौहार मनाये जाते है और कई व्रत भी ऐसे होते है जो की मानव जीवन के लिए बेहद सुखदाई होते है जिसे मनुष्य अपने ऊपर आने वाली समस्याओ का निवारण कर सकता है उन्ही में से एक व्रत और आता है सोमवती अमावस्या का वैसे तो यह व्रत शादीशुदा औरतो द्वारा पति की दीर्घायु के लिए रखा जाता है इसके पीछे एक अत्यंत प्राचीन कथा जिसकी जानकारी हम आपको देते है और बताते है की आपको यह व्रत किस तरह रखना है और इस व्रत का क्या महत्त्व है |
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अमावस्या कब की है
Amavasya Kab Ki Hai : हिन्दू कैलेंडर के अनुसार सोमवती अमावस्या का व्रत हर साल ज्येष्ठ या आषाढ़ माह की अमावस्या को सोमवार के दिन रखा जाता है इस साल यानि 2020 में यह व्रत 21 अगस्त को रखने का प्रावधान है |
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सोमवती अमावस्या की कहानी
Somvati Amavasya ki Kahani : एक बार एक गरीब ब्राह्मण था उसके एक पत्नी और एक पुत्री थी उनकी पुत्री बड़ी ही संस्कारवान, सुन्दर, और गुणवान थी पुत्री जब बड़ी हो गयी तब ब्राहण को उसकी शादी की चिंता सताने लगी लेकिन उनकी पुत्री की शादी का कोई योग नहीं बन रहा था | तभी एक साधू उस ब्राहण के घर पधारे और ब्राहण से साधु से अपनी पुत्री की शादी के योग के बारे में पूछा तब उन्होंने बताया था की इस लड़की के हाथो में तो शादी का योग ही नहीं है |
तब उस ब्राहण ने साधु से इस समस्या का समाधान पूछा तब उस साधु ने उन्हें बताया की इस गाँव के बहार एक सोना नाम की धोबिन रहती है जो की एक पतिव्रता नारी है अगर तुम इन्हे खुश करने में सफल हुई तो वह अपनी मांग का सिन्दूर तुम्हारे मस्तिष्क पर लगा देती है तो विवाह का योग तुम्हारी नसीब में आ जायेगा | ऐसा करने से ब्राहण की पुत्री सुबह उठ कर ही उस धोबन के घर जाकर उनके घर के सारे काम कर आती थी | लेकिन धोबिन को इस बात का नहीं पता था की यह सब काम कोण करता है वह सोचती की उसकी बहु तो सुबह देर से उठती है फिर सुबह इतनी जल्दी घर का काम कौन कर जाता है |
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सोमवती अमावस्या का महत्व
Somvati Amavasya Ka Mahatv : जब उसने यह बात अपनी बहु से पूछी तो बहु ने बताया की माँ जी मै ये सोचती थी की आप ही सुबह उठ कर यह सारे काम कर देती है तो दोनों सास बहु ने एक दिन सुबह उठ कर देखा की यह काम कौन कर जाता है तो अगले ही दिन उन्होंने ब्राहण की पुत्री को पकड़ लिया और इस तरह से काम करने का कारन पूछा और उस स्त्री ने उस धोबन को सारी व्यथा सुनाई | उस धोबन का पति अस्वस्थ्य था उसने जैसे ही अपनी मांग का सिन्दूर उस लड़की पर लगाया तभी उसका पति मर गया | जब उसे इस बात का पता चला तो वह पीपल के पेड़ की परिक्रमा करने के लिए पीपल के पेड़ की तरफ दौड़ी | वहां जल्दी-2 में उसे कुछ नहीं सुझा तब उसने ईंट के टुकड़ो से ही 108 बार भंवरी देकर 108 पर पीपल के पेड़ की परिक्रमा दी | उस दिन उस धोबन ने कुछ नहीं खाया था और उसकी यह पूजा सफल हुई और उसके फलस्वरूप उसका पति जीवित हो गया और उस दिन सोमवती अमावस्या थी और हर सोमवती अमावस्या सोमवार के दिन ही मनाई जाती है |
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