शायरी (Shayari)

शेख मोहम्मद इब्राहिम ज़ौक़ शायरी इन हिंदी – शेर व ग़ज़ल

Sheikh Muhammad Ibrahim Zauq Shayari In Hindi – Sher Va Ghazal : मोहम्मद इब्राहिम ज़ौक़ का जन्म 1789 में दिल्ली में हुआ था यह एक प्रेमिस शायर थे और यह उर्दू के एक प्रसिद्द कवि थे | इनका असली नाम शेख़ इब्राहिम था इनके पिता का नाम शेख़ मुहम्मद रमज़ान था इनकी मृत्यु दिल्ली में ही 1854 में हुई थी | इसीलिए हम आपको इब्राहिम जौंक जी द्वारा कुछ बेहतरीन ग़ज़ल, शेरो-शायरियो व पोएट्री के बारे में बताते है जिनकी मदद से आप इनके बारे में काफी कुछ जान सकते है |

यह भी देखे : अनवर मसूद की शायरी – पोएट्री व ग़ज़ल

जौक के शेर

वक़्त-ए-पीरी शबाब की बातें
ऐसी हैं जैसे ख़्वाब की बातें

कितने मुफ़लिस हो गए कितने तवंगर हो गए
ख़ाक में जब मिल गए दोनों बराबर हो गए

क्या देखता है हाथ मिरा छोड़ दे तबीब
याँ जान ही बदन में नहीं नब्ज़ क्या चले

क्या जाने उसे वहम है क्या मेरी तरफ़ से
जो ख़्वाब में भी रात को तन्हा नहीं आता

याँ लब पे लाख लाख सुख़न इज़्तिराब में
वाँ एक ख़ामुशी तिरी सब के जवाब में

सज्दे में उस ने हम को आँखें दिखा के मारा
काफ़िर की देखो शोख़ी घर में ख़ुदा के मारा

लेते हैं समर शाख़-ए-समरवर को झुका कर
झुकते हैं सख़ी वक़्त-ए-करम और ज़ियादा

मौत ने कर दिया लाचार वगरना इंसाँ
है वो ख़ुद-बीं कि ख़ुदा का भी न क़ाइल होता

मिरा घर तेरी मंज़िल गाह हो ऐसे कहाँ तालेअ’
ख़ुदा जाने किधर का चाँद आज ऐ माह-रू निकला

तुम जिसे याद करो फिर उसे क्या याद रहे
न ख़ुदाई की हो परवा न ख़ुदा याद रहे

तू जान है हमारी और जान है तो सब कुछ
ईमान की कहेंगे ईमान है तो सब कुछ

शुक्र पर्दे ही में उस बुत को हया ने रक्खा
वर्ना ईमान गया ही था ख़ुदा ने रक्खा

सितम को हम करम समझे जफ़ा को हम वफ़ा समझे
और इस पर भी न वो समझे तो उस बुत से ख़ुदा समझे

यह भी देखे : मशहूर शायर सलीम कौसर की शायरी – शेर व ग़ज़लें

जौक की शायरी | Zauq Ki Shayari In Hindi

रुलाएगी मिरी याद उन को मुद्दतों साहब
करेंगे बज़्म में महसूस जब कमी मेरी

तवाज़ो का तरीक़ा साहिबो पूछो सुराही से
कि जारी फ़ैज़ भी है और झुकी जाती है गर्दन भी

पीर-ए-मुग़ाँ के पास वो दारू है जिस से ‘ज़ौक़’
नामर्द मर्द मर्द-ए-जवाँ-मर्द हो गया

पिला मय आश्कारा हम को किस की साक़िया चोरी
ख़ुदा से जब नहीं चोरी तो फिर बंदे से क्या चोरी

तुम भूल कर भी याद नहीं करते हो कभी
हम तो तुम्हारी याद में सब कुछ भुला चुके

उठते उठते मैं ने इस हसरत से देखा है उन्हें
अपनी बज़्म-ए-नाज़ से मुझ को उठा कर रो दिए

ज़ाहिद शराब पीने से काफ़िर हुआ मैं क्यूँ
क्या डेढ़ चुल्लू पानी में ईमान बह गया

‘ज़ौक़’ जो मदरसे के बिगड़े हुए हैं मुल्ला
उन को मय-ख़ाने में ले आओ सँवर जाएँगे

है ऐन-ए-वस्ल में भी मिरी चश्म सू-ए-दर
लपका जो पड़ गया है मुझे इंतिज़ार का

सब को दुनिया की हवस ख़्वार लिए फिरती है
कौन फिरता है ये मुर्दार लिए फिरती है

हक़ ने तुझ को इक ज़बाँ दी और दिए हैं कान दो
इस के ये मअ’नी कहे इक और सुने इंसान दो

हो उम्र-ए-ख़िज़्र भी तो हो मालूम वक़्त-ए-मर्ग
हम क्या रहे यहाँ अभी आए अभी चले

लाई हयात आए क़ज़ा ले चली चले
अपनी ख़ुशी न आए न अपनी ख़ुशी चले

शेख मोहम्मद इब्राहिम ज़ौक़ शायरी इन हिंदी - शेर व ग़ज़ल

Hindi Shayari Ibrahim Zauq

बा’द रंजिश के गले मिलते हुए रुकता है दिल
अब मुनासिब है यही कुछ मैं बढ़ूँ कुछ तू बढ़े

बाक़ी है दिल में शैख़ के हसरत गुनाह की
काला करेगा मुँह भी जो दाढ़ी सियाह की

बैठे भरे हुए हैं ख़ुम-ए-मय की तरह हम
पर क्या करें कि मोहर है मुँह पर लगी हुई

मोअज़्ज़िन मर्हबा बर-वक़्त बोला
तिरी आवाज़ मक्के और मदीने

निकालूँ किस तरह सीने से अपने तीर-ए-जानाँ को
न पैकाँ दिल को छोड़े है न दिल छोड़े है पैकाँ को

फिर मुझे ले चला उधर देखो
दिल-ए-ख़ाना-ख़राब की बातें

फूल तो दो दिन बहार-ए-जाँ-फ़ज़ा दिखला गए
हसरत उन ग़ुंचों पे है जो बिन खिले मुरझा गए

राहत के वास्ते है मुझे आरज़ू-ए-मर्ग
ऐ ‘ज़ौक़’ गर जो चैन न आया क़ज़ा के बाद

हम नहीं वो जो करें ख़ून का दावा तुझ पर
बल्कि पूछेगा ख़ुदा भी तो मुकर जाएँगे

न हुआ पर न हुआ ‘मीर’ का अंदाज़ नसीब
‘ज़ौक़’ यारों ने बहुत ज़ोर ग़ज़ल में मारा

नाज़ है गुल को नज़ाकत पे चमन में ऐ ‘ज़ौक़’
उस ने देखे ही नहीं नाज़-ओ-नज़ाकत वाले

नाज़ुक-कलामियाँ मिरी तोड़ें अदू का दिल
मैं वो बला हूँ शीशे से पत्थर को तोड़ दूँ

बजा कहे जिसे आलम उसे बजा समझो
ज़बान-ए-ख़ल्क़ को नक़्क़ारा-ए-ख़ुदा समझो

बेहतर तो है यही कि न दुनिया से दिल लगे
पर क्या करें जो काम न बे-दिल-लगी चले

यह भी देखे : नज़ीर अकबराबादी शायरी इन हिंदी – शेर व ग़ज़लें

Zauq Poetry In Urdu

बे-क़रारी का सबब हर काम की उम्मीद है
ना-उमीदी हो तो फिर आराम की उम्मीद है

हम रोने पे आ जाएँ तो दरिया ही बहा दें
शबनम की तरह से हमें रोना नहीं आता

हमें नर्गिस का दस्ता ग़ैर के हाथों से क्यूँ भेजा
जो आँखें ही दिखानी थीं दिखाते अपनी नज़रों से

मरज़-ए-इश्क़ जिसे हो उसे क्या याद रहे
न दवा याद रहे और न दुआ याद रहे

मज़े जो मौत के आशिक़ बयाँ कभू करते
मसीह ओ ख़िज़्र भी मरने की आरज़ू करते

मज़कूर तिरी बज़्म में किस का नहीं आता
पर ज़िक्र हमारा नहीं आता नहीं आता

रहता सुख़न से नाम क़यामत तलक है ‘ज़ौक़’
औलाद से तो है यही दो पुश्त चार पुश्त

दुकान-ए-हुस्न में मिलती नहीं मता-ए-वफ़ा
वगर्ना लेते हम एक अपने मेहरबाँ के लिए

दुनिया ने किस का राह-ए-फ़ना में दिया है साथ
तुम भी चले चलो यूँही जब तक चली चले

बोसा जो रुख़ का देते नहीं लब का दीजिए
ये है मसल कि फूल नहीं पंखुड़ी सही

देख छोटों को है अल्लाह बड़ाई देता
आसमाँ आँख के तिल में है दिखाई देता

दिखाने को नहीं हम मुज़्तरिब हालत ही ऐसी है
मसल है रो रहे हो क्यूँ कहा सूरत ही ऐसी है

मालूम जो होता हमें अंजाम-ए-मोहब्बत
लेते न कभी भूल के हम नाम-ए-मोहब्बत

Contents

Click to comment

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Most Popular

you can contact us on my email id: harshittandon15@gmail.com

Copyright © 2016 कैसेकरे.भारत. Bharat Swabhiman ka Sankalp!

To Top