Sheen Kaaf Nizam Ki Shayari – Hindi Urdu Ghazal Sher Shayari : शीन काफ़ निज़ाम जोकि हिंदी के एक जाने-माने साहित्यकारों में शुमार है इनका जन्म 1947 में जोधपुर में हुआ था इनका बचपन का नाम शिव किशन बिस्सा था | इनके द्वारा कविता संग्रह लिखा गया जिसका नाम है गुमशुदा देर की गूंजती घंटियां जिसके लिए इन्हें सन 2010 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया था यह हिंदी तथा उर्दू के बहु प्रसिद्ध कवि थे इसीलिए हम आपको इनके द्वारा रचित रचनाओं में से कुछ शेर और शायरियां व ग़ज़ल की जानकारी देते हैं जिन्हें पढ़कर आप इनके बारे में काफी कुछ जान सकते हैं |
यह भी देखे : नज़ीर अकबराबादी शायरी इन हिंदी – शेर व ग़ज़लें
Sheen Kaaf Nizam Poetry
निकले कभी न घर से मगर इस के बावजूद
अपनी तमाम उम्र सफ़र में गुज़र गई
पत्तियाँ हो गईं हरी देखो
ख़ुद से बाहर भी तो कभी देखो
ऊँची इमारतें तो बड़ी शानदार हैं
लेकिन यहाँ तो रेन-बसेरे थे क्या हुए
ज़ुल्म तो बे-ज़बान है लेकिन
ज़ख़्म को तू ज़बान कब देगा
वहशत तो संग-ओ-ख़िश्त की तरतीब ले गई
अब फ़िक्र ये है दश्त की वुसअत भी ले न जाए
याद और याद को भुलाने में
उम्र की फ़स्ल कट गई देखो
यादों की रुत के आते ही सब हो गए हरे
हम तो समझ रहे थे सभी ज़ख़्म भर गए
साहिलों की शफ़ीक़ आँखों में
धूप कपड़े उतार कर चमके
सुन लिया होगा हवाओं में बिखर जाता है
इस लिए बच्चे ने काग़ज़ पे घरौंदा लिख्खा
यह भी देखे : शेख मोहम्मद इब्राहिम ज़ौक़ शायरी इन हिंदी – शेर व ग़ज़ल
Nizam Ki Shayari
आँखें कहीं दिमाग़ कहीं दस्त ओ पा कहीं
रस्तों की भीड़-भाड़ में दुनिया बिखर गई
आरज़ू थी एक दिन तुझ से मिलूँ
मिल गया तो सोचता हूँ क्या करूँ
अपने अफ़्साने की शोहरत उसे मंज़ूर न थी
उस ने किरदार बदल कर मिरा क़िस्सा लिख्खा
अपनी पहचान भीड़ में खो कर
ख़ुद को कमरों में ढूँडते हैं लोग
बदलती रुत का नौहा सुन रहा है
नदी सोई है जंगल जागता है
बरसों से घूमता है इसी तरह रात दिन
लेकिन ज़मीन मिलती नहीं आसमान को
बीच का बढ़ता हुआ हर फ़ासला ले जाएगा
एक तूफ़ाँ आएगा सब कुछ बहा ले जाएगा
चुभन ये पीठ में कैसी है मुड़ के देख तो ले
कहीं कोई तुझे पीछे से देखता होगा
दरवाज़ा कोई घर से निकलने के लिए दे
बे-ख़ौफ़ कोई रास्ता चलने के लिए दे
धूल उड़ती है धूप बैठी है
ओस ने आँसुओं का घर छोड़ा
यह भी देखे : अनवर मसूद की शायरी – पोएट्री व ग़ज़ल
Sher & Shayari of Sheen Kaaf Nizam
दोस्ती इश्क़ और वफ़ादारी
सख़्त जाँ में भी नर्म गोशे हैं
एक आसेब है हर इक घर में
एक ही चेहरा दर-ब-दर चमके
गली के मोड़ से घर तक अँधेरा क्यूँ है ‘निज़ाम’
चराग़ याद का उस ने बुझा दिया होगा
जिन से अँधेरी रातों में जल जाते थे दिए
कितने हसीन लोग थे क्या जाने क्या हुए
कहाँ जाती हैं बारिश की दुआएँ
शजर पर एक भी पत्ता नहीं है
किसी के साथ अब साया नहीं है
कोई भी आदमी पूरा नहीं है
कोई दुआ कभी तो हमारी क़ुबूल कर
वर्ना कहेंगे लोग दुआ से असर गया
मंज़र को किसी तरह बदलने की दुआ दे
दे रात की ठंडक को पिघलने की दुआ दे
Contents
