राहत इन्दौरी शायरी : राहत इन्दौरी जी एक बहुत प्रसिद्ध उर्दू के भारतीय शायर थे और उनका नाम हिंदी फिल्मो में भी काफी मशहूर थे उन्होंने हिंदी फिल्मो में भी कई गीत गए है इसलिए उनकी वो एक गीतकार के रूप में भी प्रसिद्ध थे उनका जन्म 1 जनवरी 1950 में इंदौर में हुआ था वे देवी अहिल्या विश्वविद्यालय इंदौर में उर्दू साहित्य के प्राध्यापक भी रह चुके हैं राहत जी के द्वारा कही गयी कुछ दिल छूने वाली शायरी से अवगत करते है जो की कई महान उर्दू के शायरों जैसे आनिस मोईन और अब्दुल हामिद अदम जैसे शायरों से भी बढ़ कर मानी जाती है | इसके अलावा हम आपको बताते है उनके दो लाइन के शेर जो की प्रेरणादायक है |
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राहत इन्दौरी शेर : अगर आप शेर के सम्राट इन्दौरी जी द्वारा लिखे गए शेर जानना चाहे तो हमारे इस पोस्ट के माध्यम से दे सकते है और आज ही शेयर करे अपने दोस्तों को :
आँख में पानी रखो होंटों पे चिंगारी रखो
ज़िंदा रहना है तो तरकीबें बहुत सारी रखो
अब तो हर हाथ का पत्थर हमें पहचानता है
उम्र गुज़री है तिरे शहर में आते जाते
बहुत ग़ुरूर है दरिया को अपने होने पर
जो मेरी प्यास से उलझे तो धज्जियाँ उड़ जाएँ
बीमार को मरज़ की दवा देनी चाहिए
मैं पीना चाहता हूँ पिला देनी चाहिए
बोतलें खोल कर तो पी बरसों
आज दिल खोल कर भी पी जाए
दोस्ती जब किसी से की जाए
दुश्मनों की भी राय ली जाए
एक ही नद्दी के हैं ये दो किनारे दोस्तो
दोस्ताना ज़िंदगी से मौत से यारी रखो
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राहत इन्दौरी ग़ज़ल : वैसे तो हम सभी जानते है की राहत जी एक महान उर्दू के शायर है लेकिन हम आपको उनके द्वारा कुछ हिंदी की ग़ज़ल बताते है जो की काबिले तारीफ है :
घर के बाहर ढूँढता रहता हूँ दुनिया
घर के अंदर दुनिया-दारी रहती है
हम से पहले भी मुसाफ़िर कई गुज़रे होंगे
कम से कम राह के पत्थर तो हटाते जाते
ख़याल था कि ये पथराव रोक दें चल कर
जो होश आया तो देखा लहू लहू हम थे
मैं आ कर दुश्मनों में बस गया हूँ
यहाँ हमदर्द हैं दो-चार मेरे
मैं आख़िर कौन सा मौसम तुम्हारे नाम कर देता
यहाँ हर एक मौसम को गुज़र जाने की जल्दी थी
मैं ने अपनी ख़ुश्क आँखों से लहू छलका दिया
इक समुंदर कह रहा था मुझ को पानी चाहिए
Rahat Indori Shayari In Urdu
राहत इन्दौरी शायरी इन उर्दू : उर्दू के महान शायर राहत जी के द्वरा कुछ चुनिंदा शायरी पाने के लिए आप नीचे दी हुई शायरियो को पढ़ सकते है :
मैं पर्बतों से लड़ता रहा और चंद लोग
गीली ज़मीन खोद के फ़रहाद हो गए
मज़ा चखा के ही माना हूँ मैं भी दुनिया को
समझ रही थी कि ऐसे ही छोड़ दूँगा उसे
मिरी ख़्वाहिश है कि आँगन में न दीवार उठे
मिरे भाई मिरे हिस्से की ज़मीं तू रख ले
न हम-सफ़र न किसी हम-नशीं से निकलेगा
हमारे पाँव का काँटा हमीं से निकलेगा
नए किरदार आते जा रहे हैं
मगर नाटक पुराना चल रहा है
रोज़ पत्थर की हिमायत में ग़ज़ल लिखते हैं
रोज़ शीशों से कोई काम निकल पड़ता है
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राहत इन्दौरी पोएट्री : राहत इन्दौरी जी की कुछ पोएट्री भी आप नीचे दी हुई पोस्ट के माध्यम से जान सकते है और अपने दोस्तों को फेसबुक या व्हाट्सएप्प पर भी सन्देश के माध्यम से भेज सकते है :
रोज़ तारों को नुमाइश में ख़लल पड़ता है
चाँद पागल है अँधेरे में निकल पड़ता है
शाख़ों से टूट जाएँ वो पत्ते नहीं हैं हम
आँधी से कोई कह दे कि औक़ात में रहे
उस की याद आई है साँसो ज़रा आहिस्ता चलो
धड़कनों से भी इबादत में ख़लल पड़ता है
वो चाहता था कि कासा ख़रीद ले मेरा
मैं उस के ताज की क़ीमत लगा के लौट आया
ये हवाएँ उड़ न जाएँ ले के काग़ज़ का बदन
दोस्तो मुझ पर कोई पत्थर ज़रा भारी रखो
ये ज़रूरी है कि आँखों का भरम क़ाएम रहे
नींद रक्खो या न रक्खो ख़्वाब मेयारी रखो
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