क़तील शिफ़ाई शायरी : क़तील शिफ़ाई जी ने एक महान उर्दू भाषा के पाकिस्तानी कवि थे उनका पूरा नाम मुहम्मद औरंगज़ेब था उनका जन्म 24 दिसम्बर 1919 में पाकिस्तान में हुआ था उनके द्वारा लिखी गयी शेरो शायरी और ग़ज़ल काबिले तारीफ है इनका निधन 81 साल की उम्र में 11 जुलाई 2001 में पकिस्तान में हो चुका है | तो आज हम आपको क़तील जी द्वारा कही गयी बेहतरीन शायरियो बताएँगे जो की प्रेरणादायक सिद्ध होती है वैसे तो उन्होंने लव के ऊपर भी कई शायरियां लिखी है जो की हर प्यार करने वाले के लिए अच्छी है |
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Qateel Shifai 2 Line Poetry
क़तील शिफ़ाई 2 लाइन पोएट्री : अगर आप क़तील जी की दो लाइन की पोएट्री जानना चाहे तो देख सकते है दो लाइन की शायरियां और अपने दोस्तों को शेयर कर सकते है :
वादा फिर वादा है मैं ज़हर भी पी जाऊँ “क़तील”
शर्त ये है कोई बाँहों में सम्भाले मुझको
यारो ये दौर ज़ौफ़-ए-बसारत का दौर है
आँधी उठे तो उसको घटा कह लिया करो
कभी न सोचा था हमने “क़तील” उस के लिये
करेगा हम पे सितम वो भी हर किसी की तरह
हाथ दिया उसने मेरे हाथ में
मैं तो वली बन गया एक रात मे
प्यार बुरी शय नहीं है लेकिन फिर भी यार “क़तील”
गली-गली तकसीम न तुम अपने जज़्बात करो
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Qateel Shifai Ghazals Lyrics
क़तील शिफ़ाई ग़ज़ल लिरिक्स : अगर आप क़तील जी की उर्दू की ग़ज़ल जानना चाहे तो यहाँ से जाने और पाए बेहतरीन शायरियो का खजाना :
मिल भी लेते हैं गले से अपने मतलब के लिए
आ पड़े मुश्किल तो नज़रें भी चुरा लेते हैं लोग
कभी न ख़त्म किया मैं ने रोशनी का मुहाज़*
अगर चिराग़ बुझा, दिल जला लिया मैनें
रास आया नहीं तस्कीं* का साहिल कोई
फिर मुझे प्यास के दरिया में उतारा जाये
रात के सन्नाटे में हमने क्या-क्या धोके खाए है
अपना ही जब दिल धड़का तो हम समझे वो आए है
वो दिल ही क्या तेरे मिलने की जो दुआ न करे
मैं तुझको भूल के ज़िंदा रहूँ ख़ुदा न करे
Qateel Shifai Collection
क़तील शिफ़ाई कलेक्शन : क़तील शिफ़ाई जी की शायरियो का कलेक्शन आप यहाँ से जाने और चाहे तो यहाँ से उनकी शायरियो के कुछ अंश पढ़ भी सकते है :
क्या जाने किस अदा से लिया तू ने मेरा नाम
दुनिया समझ रही है कि सच-मुच तिरा हूँ मैं
गर दे गया दगा़ हमें तूफ़ान भी ‘क़तील’
साहिल पे कश्तियों को डूबोया करेंगे हम
अब जिस के जी में आए वही पाए रौशनी
हम ने तो दिल जला के सर-ए-आम रख दिया
गर्मी-ए-हसरत-ए-नाकाम से जल जाते हैं
हम चराग़ों की तरह शाम से जल जाते हैं
मुझ से तू पूछने आया है वफ़ा के मअनी
ये तिरी सादा-दिली मार न डाले मुझ को
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Qateel Shifai Yeh Udaas Udaas
यूँ तसल्ली दे रहे हैं हम दिल-ए-बीमार को
जिस तरह थामे कोई गिरती हुई दीवार को
अच्छा यक़ीं नहीं है तो कश्ती डुबा के देख
इक तू ही नाख़ुदा नहीं ज़ालिम ख़ुदा भी है
इक-इक पत्थर जोड़ के मैंने जो दीवार बनाई है
झांखू उस के पीछे तो स्र्स्वाई ही स्र्स्वाई है
ख़ुद को मैं बांट न डालूं कहीं दामन-दामन
कर दिया तूने अगर मेरे हवाले मुझको
क्या मस्लहत-शनास था वो आदमी क़तील
मजबूरियों का जिस ने वफ़ा नाम रख दिया
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