शायरी (Shayari)

Munir Niazi Shayari

मुनीर नियाज़ी शायरी : मुनीर नियाज़ी अतिप्रसिद्ध उर्दू और पंजाबी शायर थे इनका जन्म 9 अप्रैल 1928 में पंजाब के खानपुर गांव में हुआ था और इनकी मृत्यु 78 साल की उम्र में 26 दिसम्बर 2006 को हुई | तो आज हम आपको मुनीर जी के द्वारा लिखी गयी कुछ ऐसी ही दिल छूने वाली शायरी बताते है की काबिले तारीफ है उनकी शायरियाँ प्यार के ऊपर है जिनको पढ़ कर लव की फीलिंग आती है तो जानिए उनके दो लाइन के शेर जो की प्रेरणादायक है |

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Munir Niazi Two Line Poetry

मुनीर नियाज़ी पोएट्री टू लाइन पोएट्री : अगर आप केवल दो लाइन में मुनीर जी की शायरियाँ जानना चाहे तो आप हमारे नीचे दी हुई शायरियो के माध्यम से जान सकते है :

आ गई याद शाम ढलते ही
बुझ गया दिल चराग़ जलते ही

आँखों में उड़ रही है लुटी महफ़िलों की धूल
इबरत-सरा-ए-दहर है और हम हैं दोस्तो

आदत ही बना ली है तुम ने तो ‘मुनीर’ अपनी
जिस शहर में भी रहना उकताए हुए रहना

आवाज़ दे के देख लो शायद वो मिल ही जाए
वर्ना ये उम्र भर का सफ़र-ए-राएगाँ तो है

अब कौन मुंतज़िर है हमारे लिए वहाँ
शाम आ गई है लौट के घर जाएँ हम तो क्या

अब किसी में अगले वक़्तों की वफ़ा बाक़ी नहीं
सब क़बीले एक हैं अब सारी ज़ातें एक सी

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Munir Niazi Poetry in Roman Urdu

मुनीर नियाज़ी पोएट्री इन रोमन उर्दू : यदि आप मुनीर जी की पोएट्री को पढ़े तो आप नीचे दी हुई कुछ शायरियो को पढ़ सकते है और पाए बेहतरीन शायरियाँ :

अच्छी मिसाल बनतीं ज़ाहिर अगर वो होतीं
इन नेकियों को हम तो दरिया में डाल आए

ऐसा सफ़र है जिस की कोई इंतिहा नहीं
ऐसा मकाँ है जिस में कोई हम-नफ़स नहीं

अपने घरों से दूर बनों में फिरते हुए आवारा लोगो
कभी कभी जब वक़्त मिले तो अपने घर भी जाते रहना

अपनी ही तेग़-ए-अदा से आप घायल हो गया
चाँद ने पानी में देखा और पागल हो गया

एक दश्त-ए-ला-मकाँ फैला है मेरे हर तरफ़
दश्त से निकलूँ तो जा कर किन ठिकानों में रहूँ

Munir Niazi Shayari

Munir Niazi Punjabi Poetry

मुनीर नियाजी पंजाबी पोएट्री : पंजाबी शायरियो के लिए आप हमारे इस पोस्ट को पढ़े और पाए बेहतरीन शायरियो का खजाना जिससे की आपको मिलता है कई शायरियाँ :

एक वारिस हमेशा होता है
तख़्त ख़ाली रहा नहीं करता

इक और दरिया का सामना था ‘मुनीर’ मुझ को
मैं एक दरिया के पार उतरा तो मैं ने देखा

इक तेज़ राद जैसी सदा हर मकान में
लोगों को उन के घर में डरा देना चाहिए

इम्तिहाँ हम ने दिए इस दार-ए-फ़ानी में बहुत
रंज खींचे हम ने अपनी ला-मकानी में बहुत

कल मैं ने उस को देखा तो देखा नहीं गया
मुझ से बिछड़ के वो भी बहुत ग़म से चूर था

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Munir Niazi Facebook

मुनीर नियाज़ी फेसबुक : फेसबुक पर शेयर करने के लिए मुनीर नियाज़ी द्वारा दी गयी शायरियो को पढ़े और जाने बेहतरीन जानकारी मुनीर जी के बारे में :

कटी है जिस के ख़यालों में उम्र अपनी ‘मुनीर’
मज़ा तो जब है कि उस शोख़ को पता ही न हो

कितने यार हैं फिर भी ‘मुनीर’ इस आबादी में अकेला है
अपने ही ग़म के नश्शे से अपना जी बहलाता है

कुछ दिन के बाद उस से जुदा हो गए ‘मुनीर’
उस बेवफ़ा से अपनी तबीअत नहीं मिली

कुछ वक़्त चाहते थे कि सोचें तिरे लिए
तू ने वो वक़्त हम को ज़माने नहीं दिया

क्यूँ ‘मुनीर’ अपनी तबाही का ये कैसा शिकवा
जितना तक़दीर में लिक्खा है अदा होता है

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