Momin Khan Momin Shayari In Hindi – Sher Va Ghazal : मोमिन खान मोमिन जी उर्दू के महान शायरों में से एक शायर थे इनका जन्म 1800 ईंसवी में हुआ था इन्होने कई विश्व प्रसिद्द ग़ज़लें लिखी इन पर हिंदी-उर्दू के अलावा फारसी-अरबी भाषा भी आती थी | इन्होने अपनी मौत के दिन की तारीख खुद ही लोगो को बताई थी दस्तों बाजू बशिकस्त जिसका मतलब होता है सन् 1852 ई और उसी दिन उनकी मर्त्यु कोठे में गिरने से हो गयी | यह एक सुंदर, प्रेमी, मनमौजी तथा शौकीन प्रकृति के व्यक्ति थे इसीलिए इन्होने उसी के ऊपर अपनी कई रचनाये की थी | जिसमे से कुछ शायरियो के बारे में हम आपको बताते है की उन्होंने किन-2 शायरियो को लिखा था |
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मोमिन के शेर
वो जो हम में तुम में क़रार था तुम्हें याद हो कि न याद हो
वही यानी वादा निबाह का तुम्हें याद हो कि न याद हो
हँस हँस के वो मुझ से ही मिरे क़त्ल की बातें
इस तरह से करते हैं कि गोया न करेंगे
हाल दिल यार को लिक्खूँ क्यूँकर
हाथ दिल से जुदा नहीं होता
हम समझते हैं आज़माने को
उज़्र कुछ चाहिए सताने को
हाल-ए-दिल यार को लिखूँ क्यूँकर
हाथ दिल से जुदा नहीं होता
हाथ टूटें मैं ने गर छेड़ी हों ज़ुल्फ़ें आप की
आप के सर की क़सम बाद-ए-सबा थी मैं न था
साहब ने इस ग़ुलाम को आज़ाद कर दिया
लो बंदगी कि छूट गए बंदगी से हम
मैं भी कुछ ख़ुश नहीं वफ़ा कर के
तुम ने अच्छा किया निबाह न की
मज्लिस में मिरे ज़िक्र के आते ही उठे वो
बदनामी-ए-उश्शाक़ का एज़ाज़ तो देखो
मेरे तग़ईर-ए-रंग को मत देख
तुझ को अपनी नज़र न हो जाए
शब जो मस्जिद में जा फँसे ‘मोमिन’
रात काटी ख़ुदा ख़ुदा कर के
न करो अब निबाह की बातें
तुम को ऐ मेहरबान देख लिया
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मोमिन की शायरी इन हिंदी
नासेहा दिल में तो इतना तू समझ अपने कि हम
लाख नादाँ हुए क्या तुझ से भी नादाँ होंगे
माँगा करेंगे अब से दुआ हिज्र-ए-यार की
आख़िर तो दुश्मनी है असर को दुआ के साथ
महशर में पास क्यूँ दम-ए-फ़रियाद आ गया
रहम उस ने कब किया था कि अब याद आ गया
ने जाए वाँ बने है ने बिन जाए चैन है
क्या कीजिए हमें तो है मुश्किल सभी तरह
वो आए हैं पशेमाँ लाश पर अब
तुझे ऐ ज़िंदगी लाऊँ कहाँ से
बहर-ए-अयादत आए वो लेकिन क़ज़ा के साथ
दम ही निकल गया मिरा आवाज़-ए-पा के साथ
बे-ख़ुद थे ग़श थे महव थे दुनिया का ग़म न था
जीना विसाल में भी तो हिज्राँ से कम न था
है किस का इंतिज़ार कि ख़्वाब-ए-अदम से भी
हर बार चौंक पड़ते हैं आवाज़-ए-पा के साथ
धो दिया अश्क-ए-नदामत ने गुनाहों को मिरे
तर हुआ दामन तो बारे पाक दामन हो गया
दीदा-ए-हैराँ ने तमाशा किया
देर तलक वो मुझे देखा किया
दुश्नाम-ए-यार तब्-ए-हज़ीं पर गिराँ नहीं
ऐ हम-नशीं नज़ाकत-ए-आवाज़ देखना
उस ग़ैरत-ए-नाहीद की हर तान है दीपक
शोला सा लपक जाए है आवाज़ तो देखो
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Momin Khan Momin Ghazals Tashreeh
उस नक़्श-ए-पा के सज्दे ने क्या क्या किया ज़लील
मैं कूचा-ए-रक़ीब में भी सर के बल गया
हो गए नाम-ए-बुताँ सुनते ही ‘मोमिन’ बे-क़रार
हम न कहते थे कि हज़रत पारसा कहने को हैं
हो गया राज़-ए-इश्क़ बे-पर्दा
उस ने पर्दे से जो निकाला मुँह
कल तुम जो बज़्म-ए-ग़ैर में आँखें चुरा गए
खोए गए हम ऐसे कि अग़्यार पा गए
किस पे मरते हो आप पूछते हैं
मुझ को फ़िक्र-ए-जवाब ने मारा
किसी का हुआ आज कल था किसी का
न है तू किसी का न होगा किसी का
है कुछ तो बात ‘मोमिन’ जो छा गई ख़मोशी
किस बुत को दे दिया दिल क्यूँ बुत से बन गए हो
ठानी थी दिल में अब न मिलेंगे किसी से हम
पर क्या करें कि हो गए नाचार जी से हम
थी वस्ल में भी फ़िक्र-ए-जुदाई तमाम शब
वो आए तो भी नींद न आई तमाम शब
गो आप ने जवाब बुरा ही दिया वले
मुझ से बयाँ न कीजे अदू के पयाम को
गो कि हम सफ़्हा-ए-हस्ती पे थे एक हर्फ़-ए-ग़लत
लेकिन उठ्ठे भी तो इक नक़्श बिठा कर उठे
इतनी कुदूरत अश्क में हैराँ हूँ क्या कहूँ
दरिया में है सराब कि दरिया सराब में
Shayari of Momin Khan Momin
ले शब-ए-वस्ल-ए-ग़ैर भी काटी
तू मुझे आज़माएगा कब तक
माशूक़ से भी हम ने निभाई बराबरी
वाँ लुत्फ़ कम हुआ तो यहाँ प्यार कम हुआ
कुछ क़फ़स में इन दिनों लगता है जी
आशियाँ अपना हुआ बर्बाद क्या
क्या जाने क्या लिखा था उसे इज़्तिराब में
क़ासिद की लाश आई है ख़त के जवाब में
ताब-ए-नज़्ज़ारा नहीं आइना क्या देखने दूँ
और बन जाएँगे तस्वीर जो हैराँ होंगे
उलझा है पाँव यार का ज़ुल्फ़-ए-दराज़ में
लो आप अपने दाम में सय्याद आ गया
उम्र तो सारी कटी इश्क़-ए-बुताँ में ‘मोमिन’
आख़िरी वक़्त में क्या ख़ाक मुसलमाँ होंगे
पैहम सुजूद पा-ए-सनम पर दम-ए-विदा
‘मोमिन’ ख़ुदा को भूल गए इज़्तिराब में
अब शोर है मिसाल-ए-जूदी इस ख़िराम को
यूँ कौन जानता था क़यामत के नाम को
चारा-ए-दिल सिवाए सब्र नहीं
सो तुम्हारे सिवा नहीं होता
चल दिए सू-ए-हरम कू-ए-बुताँ से ‘मोमिन’
जब दिया रंज बुतों ने तो ख़ुदा याद आया
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मोमिन ख़ाँ मोमिन ग़ज़ल इन हिंदी
तुम हमारे किसी तरह न हुए
वर्ना दुनिया में क्या नहीं होता
तुम मिरे पास होते हो गोया
जब कोई दूसरा नहीं होता
तू कहाँ जाएगी कुछ अपना ठिकाना कर ले
हम तो कल ख़्वाब-ए-अदम में शब-ए-हिज्राँ होंगे
‘मोमिन’ ख़ुदा के वास्ते ऐसा मकाँ न छोड़
दोज़ख़ में डाल ख़ुल्द को कू-ए-बुताँ न छोड़
मोमिन मैं अपने नालों के सदक़े कि कहते हैं
उस को भी आज नींद न आई तमाम शब
आप की कौन सी बढ़ी इज़्ज़त
मैं अगर बज़्म में ज़लील हुआ
राज़-ए-निहाँ ज़बान-ए-अग़्यार तक न पहुँचा
क्या एक भी हमारा ख़त यार तक न पहुँचा
रोया करेंगे आप भी पहरों इसी तरह
अटका कहीं जो आप का दिल भी मिरी तरह
डरता हूँ आसमान से बिजली न गिर पड़े
सय्याद की निगाह सू-ए-आशियाँ नहीं
एजाज़-ए-जाँ-दही है हमारे कलाम को
ज़िंदा किया है हम ने मसीहा के नाम को
ग़ैरों पे खुल न जाए कहीं राज़ देखना
मेरी तरफ़ भी ग़म्ज़ा-ए-ग़म्माज़ देखना
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