महर्षि दयानंद सरस्वती जयंती : जैसा की हम सभी जानते है की दयानंद जी हमारे भारत के समाज-सुधारक, महान चिन्तक व देशभक्त थे उनके बचपन का नाम मूलशंकर था इसके अलावा इन्होंने ही आर्य समाज की स्थापना की | तो आज हम आपको महर्षि दयानंद जी की जयंती के अवसर पर उनके बारे में कुछ महत्वपूर्ण और जानने योग्य बाते बताते है जिनको जान कर आपको उनके बारे में जानकारी मिलती है तो आप उनकी जयंती के अवसर पर उनके बारे में कुछ महत्वपूर्ण बाते जान कर सकते है |
यह भी देखे : मुंशी प्रेमचंद
Dayananda Saraswati
स्वामी दयानंद : दयानंद जी का जन्म 12 फरवरी 1824 को मोरबी (मुम्बई की मोरवी रियासत) के पास काठियावाड़ क्षेत्र (जिला राजकोट), गुजरात में हुआ था | इनके पिता जी का नाम कर्शन लाल जी और माता का नाम यशोदा बाई है इनके पिता एक कलेक्टर थे दयाशंकर जी का असली नाम मूलशंकर था वो एक पंडित बनने के लिए संस्कृत, वेद, शास्त्रों व अन्य धार्मिक पुस्तकों के अध्ययन किया दयानंद जी ने ज्ञान की प्राप्ति करने के लिए 21 साल की उम्र में ही अपना घर छोड़ दिया इस वजह से उन्होंने शादी तक नहीं की उन्होंने मथुरा में स्वामी विरजानंद जि के पास रहकर वेद आदि आर्य-ग्रंथों का अध्ययन किया | और गुरुदक्षिणा के समय उनके गुरु स्वामी विरजानंद जी ने उनसे यह प्रण लिया कि वे आयु-भर वेद आदि सत्य विद्याओं का प्रचार करते रहेंगे और दयानंद जी ने अपना यह प्रण निभाया |
यह भी देखे : Abraham Lincoln Biography in Hindi
Swami Dayanand Saraswati Arya Samaj
स्वामी दयानंद सरस्वती आर्य समाज : स्वामी दयानंद सरस्वती जी को सभी वेदों का ज्ञान थे और यह बहुत ही कर्मठ और जुझारू थे स्वामीजी ने कर्म सिद्धान्त, पुनर्जन्म, ब्रह्मचर्य तथा सन्यास इन चार स्तंभो को अपना जीवन बनाया और हिंदी पंचांग के अनुसार स्वामी दयानंद सरस्वती जी की जयंती 2020 में 21 फरवरी को है | हिंदी और संस्कृत का अच्छा ज्ञान होने के कारणवश स्वामी जी ने 7 अप्रैल, सन 1875 में आर्य समाज की स्थापना की |
यह भी देखे : shivaji maharaj history in hindi
Swami Dayanand Saraswati in Hindi
स्वामी दयानंद सरस्वती इन हिंदी : दयानंद सरस्वती एक हिन्दू धर्म के नेता भी थे क्योंकि यह आर्य समाज के संस्थापक थे इन्होंने 7 अप्रैल, सन 1875 में आर्य समाज की स्थापना की | हिन्दू धर्म में वैदिक परंपरा को बढ़ावा देने के लिए इनका प्रमुख स्थान था क्योंकि उनको संस्कृत भाषा और विद्या का अच्छा ज्ञान था उनकी वजह से सन 1876 में “भारतीयों का भारत” नाम दिया गया भारत के राष्ट्रपति एस. राधाकृष्णन ने उन्हें “आधुनिक भारत के निर्माता” कहा वे एक स्वन्त्रता संग्रामी भी थे स्वन्त्रता संग्राम में उनका भी योगदान है क्योंकि वह समाज सुधारक के साथ-2 देशभक्त भी थे विश्व में हिन्दू धर्म की अलग पहचान बनाने के लिए उन्होंने वैदिक परम्पराओ को पुनर्स्थापित किया उन्होंने कई अन्य स्वन्त्रता संग्रामियों के साथ मिलकर स्वन्त्रता की लड़ाई में अपना अमूल्य योगदान दिया | इनकी मृत्यु अंग्रेज़ो द्वारा षडयंत्र रचने की वजह से की गयी और 30 अकटूबर 1883 को ये प्रकांड पंडित इस दुनिया से हमेशा के लिए अलविदा कह गया
Contents
