महा शिवरात्रि क्यों कैसे मनाते है : महाशिवरात्रि का महा उत्सव फाल्गुड मास की त्रिद्रशी के दिन मनाया जाता है महाशिवरात्रि के पावन पर्व पर ही भोलेनाथ और माँ शक्ति यानि पार्वती माता का विवाह हुआ था इसके अलावा ऐसी भी मान्यता है की हम इस संसार में किसी का भी जन्मोत्सव मनाते हैं तो उसे जन्मदिवस कहते हैं भले ही वह रात्रि में पैदा हुआ हो, मनाव जन्मोत्सव को जन्म-रात्रि नहीं वरन् जन्म-दिवस के रूप में मनाते हैं परंतु शिव के जन्म-दिवस को शिवरात्रि ही कहते हैं। वास्तव में यहां शिव के साथ जुड़ी हुई रात्रि स्थूल अंधकार का वाचक नहीं है यह दिन बहुत ही खास और पवित्र दिन होता है इस दिन श्रद्धालु भगवान शिव की पूजा अर्चना करते है और उनके लिए उपवास भी रखते है तो आज हम आपाको बताते है की हम शिवरात्रि को क्यों मनाते है और कैसे मनाते है इस तरह की सभी जानकारी हम आपको देते है |
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Maha Shivaratri Story in Hindi
महा शिवरात्रि स्टोरी इन हिंदी : कहा जाता है की प्राचीन काल में, एक जंगल में गुरूद्रूह नाम के एक शिकारी था जो की अपने कुटुंब का पेट शिकार करके भरता था तो एक दिन पूरा दिन खोजने के बाद भी उसे कोई भी पशु शिकार के लिए नहीं मिला तो वह बहुत निराश था तभी वह संध्या होते ही एक तालाब के पास गया तो वह उसने सोचा की यहाँ जरूर कोई न कोई पशु पानी पीने आएगा तभी वह उसका शिकार कर लेगा तो वह उसके पास एक पेड़ के ऊपर पानी लेकर बैठ गया लेकिन वह जिस पेड़ पर बैठा था वह बेल का पेड़ था और उसके नीचे एक भोलेनाथ की शिवलिंग थी जोकि पत्तो के ढकने की वजह से उसकी दिखाई नहीं दी तंहि वह एक हिरनी पानी पीने आयी तो जैसे ही शिकारी ने उस पर आक्रमण के लिए अपने बाण साधा तो उसके हाथ के झटके से कुछ पत्ते और पानी शिवलिंग पर जा गिरे जिससे कली उसकी प्रथम चरण की पूजा पूरी हुई |
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Shivratri Puja Vidhi in Hindi
शिवरात्रि पूजा विधि इन हिंदी : पत्तो के आवाज़ करने की वजह से ही वो हिरनी पेड़ के ऊपर देखा तो उस शिकारी से बोली मुझे मारकर तुम्हे क्या मिलेगा तभी वह शिकरी बोला की अगर मई तेरा शिकार नही करूँगा तो मेरा कुटुंब आज भूख ही रह जायेगा लेकिन हिरनी ने उसे वचन दिया की उसे जाने दिया जाये वह कुछ समय में अपने बच्चो सही स्थान पर पंहुचा कर लौटेगी तो शिकारी ने बहुत निवेदन के बाद उस हिरनी को यह कह कर जाने दिया की ‘जल्दी लौटना’ कुछ देर इंतज़ार करने के बाद वह एक और हिरनी आयी जिसकी वजह से उस शिकारी ने दूसरे चरण की पूजा भी ख़तम करदी और वह हिरनी भी उसे वही वादा करके चली गयी उसके बाद वह एक हिरन आया और उस पर बाण साधने की वजह से तीसरी चरण की पूजा भी पूरी हो गयी लेकिन उस हिरन ने भी यही आश्रय उस शिकारी को दिया की वह अपने बेटे को उसकी माँ के हाथ सौप कर लौट आएगा लेकिन शिकारी बोला अगर तुम भी बाकियो की तरह ही झूट बोलकर चले जाओगे तो मेरे परिवार का क्या होगा लेकिन हिरन ने उस शिकारी को पूरा भरोसा दिलाया और शिकारी ने उस हिरन को भी जाने दिया |
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Shivratri Vrat Katha in Hindi
शिवरात्रि व्रत कथा इन हिंदी : अब रात्रि का अंतिम चरण शुरू हो चूका था और शिकारी के हर्ष की सीमा नहीं थी तभी वहा से सब हिरन अपने बच्चो के साथ एकसाथ आते हुए दिखाई दिए उनको देखते ही शिकारी ने धनुष को बाण में रख और इससे उसकी चौथे चरण की शिव-पूजा भी संपन्न हुई जिससे की उसके सभी पाप नष्ट हो जाते है और वह सोचता है की ये पशु जो ज्ञानहीन है हो कर भी अपने शरीर से परोपकार करना चाहते हैं और मई पाप करके अपने कुटुंब का पालन करना चाहता हूँ इसके बाद उसने अपना बाण रोका और और उन सभी पशुओ को जाने दिया उसके ऎसा करने पर भगवान् शंकर ने प्रसन्न हो कर तत्काल उसे अपने दिव्य स्वरूप का दर्शन करवाया तथा उसे सुख-समृद्धि का वरदान देकर गुह” नाम प्रदान किया। यह वही गुह थे जिनके साथ भगवान् श्री राम ने मित्रता की थी। अत: यह भी माना जाता है कि, शिवरात्री के दिन व्रत करने से सारे पाप से मुक्त हो जाते है और महादेव का दर्शन कर स्वर्ग को प्राप्त होते हैं |
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