शायरी (Shayari)

खुमार बाराबंकवी शायरी व ग़ज़ल

Khumar Barabankvi Shayari Va Ghazal : उर्दू जगत के महान कवियों में से एक कवि ख़ुमार बाराबंकवी लोकप्रिय शायर, फिल्मी गीत लिखने वाले थे इनका जन्म 1919 में उत्तर प्रदेश राज्य के बाराबंकवी जिले में हुआ इनका रियल नाम मोहम्मद हैदर खान था इनकी मृत्यु 1999 में हो गया था | इन्होने फ़िल्मी जगत में भी अपना योगदान दिया था तथा कई बॉलीवुड फिल्मो के लिए इन्होने गीत भी लिखे थे | इसीलिए हम आपको ख़ुमार बाराबंकवी के द्वारा लिखी गयी कुछ महत्वपूर्ण शायरी व ग़ज़ल बताते है जो की आपके लिए महत्वपूर्ण है जिन्हे आप पढ़ सकते है |

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खुमार बाराबंकवी की ग़ज़ल | Khumar Barabankvi Ghazals mp3 Download

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रौशनी के लिए दिल जलाना पड़ा
कैसी ज़ुल्मत बढ़ी तेरे जाने के बअ’द

ये वफ़ा की सख़्त राहें ये तुम्हारे पाँव नाज़ुक
न लो इंतिक़ाम मुझ से मिरे साथ साथ चल के

हाथ उठता नहीं है दिल से ‘ख़ुमार’
हम उन्हें किस तरह सलाम करें

सहरा को बहुत नाज़ है वीरानी पे अपनी
वाक़िफ़ नहीं शायद मिरे उजड़े हुए घर से

याद करने पे भी दोस्त आए न याद
दोस्तों के करम याद आते रहे

वही फिर मुझे याद आने लगे हैं
जिन्हें भूलने में ज़माने लगे हैं

हद से बढ़े जो इल्म तो है जहल दोस्तो
सब कुछ जो जानते हैं वो कुछ जानते नहीं

हटाए थे जो राह से दोस्तों की
वो पत्थर मिरे घर में आने लगे हैं

हम भी कर लें जो रौशनी घर में
फिर अंधेरे कहाँ क़याम करें

सुना है हमें वो भुलाने लगे हैं
तो क्या हम उन्हें याद आने लगे हैं

हम पे गुज़रा है वो भी वक़्त ‘ख़ुमार’
जब शनासा भी अजनबी से मिले

फूल कर ले निबाह काँटों से
आदमी ही न आदमी से मिले

तुझ को बर्बाद तो होना था बहर-हाल ‘ख़ुमार’
नाज़ कर नाज़ कि उस ने तुझे बर्बाद किया

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सुना है हमें वो भुलाने लगे हैं – खुमारी शायरी

ये कहना था उन से मोहब्बत है मुझ को
ये कहने में मुझ को ज़माने लगे हैं

हैरत है तुम को देख के मस्जिद में ऐ ‘ख़ुमार’
क्या बात हो गई जो ख़ुदा याद आ गया

रात बाक़ी थी जब वो बिछड़े थे
कट गई उम्र रात बाक़ी है

न तो होश से तआरुफ़ न जुनूँ से आश्नाई
ये कहाँ पहुँच गए हैं तिरी बज़्म से निकल के

ओ जाने वाले आ कि तिरे इंतिज़ार में
रस्ते को घर बनाए ज़माने गुज़र गए

मुझे को महरूमी-ए-नज़ारा क़ुबूल
आप जल्वे न अपने आम करें

मुझे तो उन की इबादत पे रहम आता है
जबीं के साथ जो सज्दे में दिल झुका न सके

कहीं शेर ओ नग़्मा बन के कहीं आँसुओं में ढल के
वो मुझे मिले तो लेकिन कई सूरतें बदल के

गुज़रे हैं मय-कदे से जो तौबा के ब’अद हम
कुछ दूर आदतन भी क़दम डगमगाए हैं

इक गुज़ारिश है हज़रत-ए-नासेह
आप अब और कोई काम करें

ख़ुदा बचाए तिरी मस्त मस्त आँखों से
फ़रिश्ता हो तो बहक जाए आदमी क्या है

मिरे राहबर मुझ को गुमराह कर दे
सुना है कि मंज़िल क़रीब आ गई है

इलाही मिरे दोस्त हों ख़ैरियत से
ये क्यूँ घर में पत्थर नहीं आ रहे हैं

खुमार बाराबंकवी की ग़ज़ल

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Khumar Barabankvi Lyrics Rekhta | Khumar Barabankvi Film Songs

जलते दियों में जलते घरों जैसी ज़ौ कहाँ
सरकार रौशनी का मज़ा हम से पूछिए

झुँझलाए हैं लजाए हैं फिर मुस्कुराए हैं
किस एहतिमाम से उन्हें हम याद आए हैं

दुश्मनों से प्यार होता जाएगा
दोस्तों को आज़माते जाइए

दूसरों पर अगर तब्सिरा कीजिए
सामने आइना रख लिया कीजिए

आज नागाह हम किसी से मिले
बा’द मुद्दत के ज़िंदगी से मिले

अब इन हुदूद में लाया है इंतिज़ार मुझे
वो आ भी जाएँ तो आए न ऐतबार मुझे

ऐसा नहीं कि उन से मोहब्बत नहीं रही
जज़्बात में वो पहली सी शिद्दत नहीं रही

ग़म है न अब ख़ुशी है न उम्मीद है न यास
सब से नजात पाए ज़माने गुज़र गए

चराग़ों के बदले मकाँ जल रहे हैं
नया है ज़माना नई रौशनी है

दुश्मनों से पशेमान होना पड़ा है
दोस्तों का ख़ुलूस आज़माने के बाद

अक़्ल ओ दिल अपनी अपनी कहें जब ‘ख़ुमार’
अक़्ल की सुनिए दिल का कहा कीजिए

भूले हैं रफ़्ता रफ़्ता उन्हें मुद्दतों में हम
क़िस्तों में ख़ुद-कुशी का मज़ा हम से पूछिए

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