Josh Malihabadi Ki Shayari : उर्दू के प्रसिद्ध महान शायर जोश मलीहाबादी का जन्म 5 दिसंबर 1898 को मलिहाबाद में हुआ था यह ब्रिटिश इंडिया के एक प्रसिद्ध महान शायर थे जिनके नाम का डंका आज भी उर्दू के क्षेत्र में बड़ी ही शिद्दत के साथ बजता है | जोश मलीहाबादी जी का जन्म 22 फरवरी 1982 को पाकिस्तान के इस्लामाबाद में हु था लेकिन तब तक वह अपना नाम इतिहास के पन्नो पर सुनहरे अक्षरों से दर्ज करवा चुके थे | इसीलिए हम आपको जोश मलीहाबादी जी की कुछ बेहतरीन शायरी व ग़ज़लों के बारे में बताते है जो की आपके लिए बहुत ही ज्यादा अच्छी होंगी अगर आप चाहे तो इन शायरी को पढ़ कर अपने दोस्तों के साथ भी शेयर कर सकते है |
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जोश मलीहाबादी ग़ज़ल्स
जितने गदा-नवाज़ थे कब के गुज़र चुके
अब क्यूँ बिछाए बैठे हैं हम बोरिया न पूछ
वहाँ से है मिरी हिम्मत की इब्तिदा वल्लाह
जो इंतिहा है तिरे सब्र आज़माने की
कोई आया तिरी झलक देखी
कोई बोला सुनी तिरी आवाज़
आप से हम को रंज ही कैसा
मुस्कुरा दीजिए सफ़ाई से
इस का रोना नहीं क्यूँ तुम ने किया दिल बर्बाद
इस का ग़म है कि बहुत देर में बर्बाद किया
मिला जो मौक़ा तो रोक दूँगा जलाल रोज़-ए-हिसाब तेरा
पढूँगा रहमत का वो क़सीदा कि हँस पड़ेगा अज़ाब तेरा
वो करें भी तो किन अल्फ़ाज़ में तेरा शिकवा
जिन को तेरी निगह-ए-लुत्फ़ ने बर्बाद किया
सुबूत है ये मोहब्बत की सादा-लौही का
जब उस ने वादा किया हम ने एतिबार किया
आड़े आया न कोई मुश्किल में
मशवरे दे के हट गए अहबाब
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दर्द-ए-दिल दे के मुझे उस ने ये इरशाद किया
जा तुझे कशमकश-ए-दहर से आज़ाद किया
इस दिल में तिरे हुस्न की वो जल्वागरी है
जो देखे है कहता है कि शीशे में परी है
दिल की चोटों ने कभी चैन से रहने न दिया
जब चली सर्द हवा मैं ने तुझे याद किया
क़दम इंसान का राह-ए-दहर में थर्रा ही जाता है
चले कितना ही कोई बच के ठोकर खा ही जाता है
मुझ को तो होश नहीं तुम को ख़बर हो शायद
लोग कहते हैं कि तुम ने मुझे बर्बाद किया
सोज़-ए-ग़म दे के मुझे उस ने ये इरशाद किया
जा तुझे कशमकश-ए-दहर से आज़ाद किया
हद है अपनी तरफ़ नहीं मैं भी
और उन की तरफ़ ख़ुदाई है
अब ऐ ख़ुदा इनायत-ए-बेजा से फ़ाएदा
मानूस हो चुके हैं ग़म-ए-जावेदाँ से हम
सिर्फ़ इतने के लिए आँखें हमें बख़्शी गईं
देखिए दुनिया के मंज़र और ब-इबरत देखिए
हर एक काँटे पे सुर्ख़ किरनें हर इक कली में चराग़ रौशन
ख़याल में मुस्कुराने वाले तिरा तबस्सुम कहाँ नहीं है
Josh Malihabadi Poetry In Urdu
सीने पे मेरे जब से रक्खा है हाथ तूने
कुछ और दर्द-ए-दिल में शिद्दत-सी हो गई है
ख़ंजर है जोश हाथ में दामन लहू से तर
ये उसके तौर हैं के मसीहा कहें जिसे
हश्र में भी ख़ुसरवाना शान से जायेंगे हम
और अगर पुरसिश न होगी तो पलट आयेंगे हम
फूँका हुआ है मेरे आशियाँ का हर तिनका
फ़लक को ख़ू है तो है बिजलियाँ गिराने की
अब देख उस का हाल कि आता न था करार
खुद तेरे दिल को, जिस पे इनायत किये बगैर
वो अब कहाँ हैं लेकिन ऐ हमनशीं यहाँ तो
मुड़-मुड़ के देखने की आदत-सी हो गई है
हाँ आसमान अपनी बुलंदी से होशियार
अब सर उठा रहे हैं किसी आस्ताँ से हम
इबादत करते हैं जो लोग जन्नत की तमन्ना में
इबादत तो नहीं है इक तरह की वो तिजारत है
क़सम है आपके हर रोज़ रूठ जाने की
के अब हवस है अजल को गले लगाने की
उठा लेती हैं लहरें तहनशीं होता है जब कोई
उभरना है तो ग़र्क़-ए-बह्र-ए-फ़ना हो जा
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Josh Malihabadi Nazm
किसने वादा किया है आने का
हुस्न देखो ग़रीबख़ाने का
समझती हैं म’अल-ए-गुल मगर क्या ज़ोर-ए-फ़ितरत है
सहर होते ही कलियों को तबस्सुम आ ही जाता है
शिकायत क्यों इसे कहते हो ये फ़ितरत है इंसान की
मुसीबत में ख़याल-ए-ऐश-ए-रफ़्ता आ ही जाता है
अशवों को चैन नहीं आफ़त किये बगैर
तुम, और मान जाओ शरारत किये बगैर
इधर तेरी मशिय्यत है उधर हिकमत रसूलों की
इलाही आदमी के बाब में क्या हुक्म होता है
हवाएं ज़ोर कितना ही लगाएँ आँधियाँ बनकर
मगर जो घिर के आता है वो बादल छा ही जाता है
नगरी मेरी कब तक युँही बरबाद रहेगी
दुनिया यही दुनिया है तो क्या याद रहेगी
उठो, चौंको, बढ़ो मुंह हाथ धो, आंखों को मल डालो
हवाए – इंक़िलाब आने को है हिन्दोस्तां वालो
न जाने आह! कि उन आँसूओं पे क्या गुज़री
जो दिल से आँख तक आये मिश्गाँ तक आ न सके
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