जया एकादशी क्या है : जया एकादशी बहुत ही महत्वपूर्ण त्यौहार है हिन्दू धर्म के लोगो के लिए वर्तमान में भारत के कई देशो में जया एकादशी का व्रत रखा जाता है जिसमे की भगवान विष्णु जी की पूजा होती है बहुत मायनो में यह पूजा बहुत मायने रखती है यह व्रत हर साल माघ माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी को आता है इस साल यह व्रत यानि 2020 में 7 फरवरी को है तो आज हम आपको बताएंगे जया एकादशी कथा इन हिंदी में |
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Jaya Ekadashi 2020
जया एकादशी का दिन हिन्दू धर्म के लिए बहुत धार्मिक त्यौहार है यह दिन हर साल माघ माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी को पड़ता है ओर वर्तमान में यानि 2020 में यह दिन 7 फरवरी को है |
जया एकादशी व्रत विधि
- भगवान श्रीकृष्ण के अनुसार जया एकादशी के दिन भगवान विष्णु को पूजा जाए |
- जिससे की जो श्रद्धालु भक्त इस व्रत को पूरा करेगा उसे दशमी तिथि में एक समय ही खाना खाये |
- उसके बाद एकादशी के दिन प्रातः उठकर भगवान विष्णु का ध्यान करके संकल्प करे |
- और विष्णु जी की पूजा के लिए धुप, फल, तिल, इत्यादि का प्रयोग करे |
- उसके बाद पुरे दिन व्रत रखना चाहिए |
- यदि संभव है तो कोई भी इस व्रत को रात्रि में भी रख सकता है लेकिन रात्रि में फलो का सेवन कर सकता है|
- उसके बाद द्वादशी के दिन ब्राह्मणो को भोजन करवाये और दान दे |
- जिससे इस व्रत को पुरे विधि विधान से करने पर व्यक्ति को पिशाच योनि से मुक्ति मिलती है |
जया एकादशी का महत्व
जया एकादशी बहुत ही धार्मिक और मान्य व्रत है हिन्दू धर्म है इस दिन व्रत करने से समस्त वेदों का ज्ञान,यग्यो का ज्ञान और पुण्य मिलता है तथा यह व्रत मोक्ष भी प्राप्त करता है श्री कृष्णा कथा अनुसार इस व्रत को विधिपूर्वक करने से पिशाच, योनि से छुटकारा मिलता है और अपने पापो से भी मुक्ति मिलती है तथा मनुष्य को कभी भी प्रेत योनि में नहीं जाना पड़ता |
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Ekadashi Vrat Katha in Hindi
एकादशी व्रत कथा इन हिंदी इसका मतलब है की हम आपको एकादशी की पूरी व्रत कथा हिंदी में बताएँगे जिसे जानने के लिए आपको आगे दी हुई जानकारी को पढ़ना होगा |
श्री कृष्णा के अनुसार नंदन वन म आनंदित उत्सव चल रहा था जिसमे की सभी देवता, संत, दिव्या पुरुष विराजमान हुए जिसमे की पुष्पवती नामक गंधर्व कन्या नृत्य कर रही थ जिसमे की एक माल्यवान नामक गन्धर्व भी था इसी बीच पुष्पवती की नज़र माल्यवान पर पड़ी और वो उसकी सुंदरता पर मोहित हो गयी तब्बी पुष्पवती माल्यवान को अपनी ओर रिझाने के लिए नृत्य करने लगी ओर वो माल्यवान गन्धर्व उसका नाच देखकर आकर्षित हो गया ओर बेसुरा गाने लगा |
तभी इंद्र को दोनों गन्धर्व पर क्रोध आया ओर दोनों को श्राप दे दिया की आप दोनों स्वर्ग से वंचित हो जाये ओर मृत्यु लोक में आपको नीच पिशाच योनि प्राप्त हो तभी इस श्राप से वे दोनों पिशाच बन गए ओर हिमालय पर्वत पर दोनों का निवास बन गया ओर उनको बहुत कष्ट भोगना पड़ा अचानक माघ माह की एकादशी को गंधर्वो ने कुछ नहीं खाया ओर फूल खाकर ही दिन व्यतीत किया ओर द्वादशी को इस उपवास रखने की वजह से दोनों को पिशाच रूप से मुक्ति मिल गयी ओर दोनों पहले से भी ज्यादा आकर्षित ओर सुन्दर हो गए ओर उन्हें देवलोक में जगह खुद इंद्रा देव ने दी |
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