इब्न-ए-इंशा शायरी : इब्न-ए-इंशा एक बहुत प्रसिद्ध पाकिस्तानी शायर है इनका जन्म 15 जून 1927 में पंजाब में हुआ था इन्होंने कई अलग-2 भाषाओ में रचनाये लिखी जिसमे से इन्हें अधिक ज्यादा ज्ञान उर्दू भषा का था इनकी मृत्यु 11 जनवरी 1978 में हुई थी तो आज हम आपको इब्न-ए-इंशा जी द्वारा कही गयी कुछ प्रेरणादायक और उत्साहवर्धक शायरी बताते है जो की दिल छू लेने वाली है वैसे तो इन्होंने कई उर्दू के शायरों को अपनी रचनाओ से चोंका दिया |
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Ibne Insha Best Ghazals
इब्ने इंशा बेस्ट ग़ज़ल : अगर आप शायरियो के बादशाह इंशा जी की शायरियो को जानना चाहे तो यहाँ से जान सकते है जिसमे की आपको प्यार भरी ग़ज़ल मिलती है :
आन के इस बीमार को देखे तुझ को भी तौफ़ीक़ हुई
लब पर उस के नाम था तेरा जब भी दर्द शदीद हुआ
अहल-ए-वफ़ा से तर्क-ए-तअल्लुक़ कर लो पर इक बात कहें
कल तुम इन को याद करोगे कल तुम इन्हें पुकारोगे
अपने हमराह जो आते हो इधर से पहले
दश्त पड़ता है मियाँ इश्क़ में घर से पहले
अपनी ज़बाँ से कुछ न कहेंगे चुप ही रहेंगे आशिक़ लोग
तुम से तो इतना हो सकता है पूछो हाल बेचारों का
बे तेरे क्या वहशत हम को तुझ बिन कैसा सब्र ओ सुकूँ
तू ही अपना शहर है जानी तू ही अपना सहरा है
बेकल बेकल रहते हो पर महफ़िल के आदाब के साथ
आँख चुरा कर देख भी लेते भोले भी बन जाते हो
दीदा ओ दिल ने दर्द की अपने बात भी की तो किस से की
वो तो दर्द का बानी ठहरा वो क्या दर्द बटाएगा
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Ibn e Insha 2 Line Poetry
इब्न-ए-इंशा 2 लाइन पोएट्री : केवल दो लाइन में शेर या शायरी जानने के लिए हमारी इन शायरियो के माध्यम से जान सकते है :
दिल हिज्र के दर्द से बोझल है अब आन मिलो तो बेहतर हो
इस बात से हम को क्या मतलब ये कैसे हो ये क्यूँकर हो
एक दिन देखने को आ जाते
ये हवस उम्र भर नहीं होती
एक से एक जुनूँ का मारा इस बस्ती में रहता है
एक हमीं हुशियार थे यारो एक हमीं बद-नाम हुए
गर्म आँसू और ठंडी आहें मन में क्या क्या मौसम हैं
इस बग़िया के भेद न खोलो सैर करो ख़ामोश रहो
इक साल गया इक साल नया है आने को
पर वक़्त का अब भी होश नहीं दीवाने को
‘इंशा’-जी उठो अब कूच करो इस शहर में जी को लगाना क्या
वहशी को सुकूँ से क्या मतलब जोगी का नगर में ठिकाना क्या
इस शहर में किस से मिलें हम से तो छूटीं महफ़िलें
हर शख़्स तेरा नाम ले हर शख़्स दीवाना तिरा
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Ibn e Insha in Urdu
इब्न ए इंशा इन उर्दू : उर्दू में शायरियो के लिए यहाँ देखे और पाए उर्दू शायरिया हिंदी फॉण्ट में भी | अगर आप चाहे तो आने दोस्तों को शेयर भी कर सकते है फेसबुक या व्हाट्सएप्प पर :
जब शहर के लोग न रस्ता दें क्यूँ बन में न जा बिसराम करे
दीवानों की सी न बात करे तो और करे दीवाना क्या
जल्वा-नुमाई बेपरवाई हाँ यही रीत जहाँ की है
कब कोई लड़की मन का दरीचा खोल के बाहर झाँकी है
कब लौटा है बहता पानी बिछड़ा साजन रूठा दोस्त
हम ने उस को अपना जाना जब तक हाथ में दामाँ था
कल चौदहवीं की रात थी शब भर रहा चर्चा तिरा
कुछ ने कहा ये चाँद है कुछ ने कहा चेहरा तिरा
कुछ कहने का वक़्त नहीं ये कुछ न कहो ख़ामोश रहो
ऐ लोगो ख़ामोश रहो हाँ ऐ लोगो ख़ामोश रहो
कूचे को तेरे छोड़ कर जोगी ही बन जाएँ मगर
जंगल तिरे पर्बत तिरे बस्ती तिरी सहरा तिरा
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