वैसे तो भारत में कई ऐसे त्यौहार हैं जिन्हे भारत वर्ष के लोग बड़ी श्रद्धा और विश्वास के साथ मनाते हैं| हर त्यौहार को मनाने के पीछे कुछ कारण होता हैं| होली और दिवाली ऐसे त्यौहार हैं जिन्हे हिन्दू समाज बड़ी श्रद्धा से मनाता हैं| इस साल २०१८ में होली १ मार्च को हैं और रंगो वाली होली २ मार्च को हैं| होली का त्योहार बड़े हर्षोउल्लास से मनाया जाता हैं| इसे सबसे ज्यादा उत्तरी भारत में मनाया जाता हैं|| कहा जाता हैं की इस दिन बुराई पर अच्छाई की जीत हुई थी| आज के इस पोस्ट में हम आपको हिरण्यकश्यप की कहानी आदि के बारे में जानकारी देंगे|
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होलिका दहन का शुभ मुहूर्त – होलिका दहन टाइम – समय
होलिका दहन का त्यौहार पूर्णिमा तिथि को फाल्गुन मास में मनाया जाता हैं इसी वजह से होलिका दहन को पूर्णिमा के दिन मनाया जाता हैं|
हिंदी पंचांग और holi 2022 date in india calendar के अनुसार होली इस बार 18 मार्च को है और इस बार होलिका दहन 2021, 28 मार्च को होगा जिसका शुभ समय यानि होलिका दहन मुहूर्त इस प्रकार है :
होलिका दहन मुहूर्त (Holika Dahan 2022 Shubh Muhurat)
होलिका दहन रविवार, मार्च 18, 2022 को
होलिका दहन मुहूर्त – 06:37 पी एम से 08:56 पी एम
अवधि – 02 घण्टे 20 मिनट्स
भद्रा पूँछ – 10:13 ए एम से 11:16 ए एम
भद्रा मुख – 11:16 ए एम से 01:00 पी एम
होलिका दहन प्रदोष के दौरान उदय व्यापिनी पूर्णिमा के साथ
पूर्णिमा तिथि प्रारम्भ – मार्च 28, 2021 को 03:27 ए एम बजे
पूर्णिमा तिथि समाप्त – मार्च 29, 2021 को 12:17 ए एम बजे
Holika Dahan In Hindi
इस साल होलिका दहन जिससे हम सब छोटी होली भी कहते हैं वो १ मार्च को हैं| हिन्दू धर्म में इस दिन का बहुत महत्व हैं| इस दिन को इसीलिए मनाया जाता हैं की इस दिन बुराई हारी थी और अच्छाई जीती थी| माना जाता हैं की इस दिन आप अपने अंदर की सारी बुराइयों को होलिका की अग्नि में जलाकर ख़त्म कर सकते हैं| कुछ लोगो का यह भी मानना हैं की इस दिन आपकी सारी इच्छा पूरी होती हैं| होलिका दहन प्रथा बहुत ही पावन प्रथा हैं और इससे लोग सच्ची श्रद्धा से मनाते हैं| यह पर्व होलिका दहन के 40 दिन पहले से ही आरम्भ हो जाता हैं| 40 दिन पहले ही लोग लकडिया और सूखा गोबर और कंडे इकठ्ठा करते हैं और उसे होलिका दहन के दिन जलाते हैं|
होलिका की कहानी – प्रहलाद की कहानी
इस त्यौहार को मनाने के पीछे भी एक कथा हैं| इस कथा का पुराणों में भी ज़िक्र हैं| कहा जाता हैं के पुराने जमाने में जब देवताओ का काल था तब पृथ्वी पर एक अत्याचारी राजा था जिसका नाम हिरण्यकश्यप था| वो बहुत ही क्रूर और अत्याचारी था| उसे अपनी ताकतों का इतना घमंड था की वे विष्णु भगवान् को देवता नहीं समझता था| कहा जाता हैं की उसे विष्णु भगवान् से और उनकी शक्तियों से घृणा थी| उनके बेटे का नाम प्रहलाद था और वे विष्णु भगवान के बहुत बड़े भक्त थे| वो पूरे दिन विष्णु के नाम का जाप करते रहते थे|
होलिका दहन की कथा – होलिका दहन स्टोरी
जब हिरण्यकश्यप को यह बात का पता चली तो उसने अपने ही पुत्र को मारने के लिए अपनी बहन होलिका को बुलाया| होलिका को वरदान था की अग्नि उसको कुछ नुकसान नहीं पहुंचा सकती| इसी बात का फ़ायदा उठाकर होलिका प्रहलाद को जलते हुए कुंड में लेकर बैठ गई| प्रहलाद विष्णु भगवान् के भक्त थे इसी वजह से उन्हें कुछ नहीं हुआ और होलिका अग्नि में जलकर भस्म हो गयी | इसी वजह से इस दिन को बुराई पर अच्छाई की जीत के दिन से भी जाना जाता हैं|
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होलिका दहन की पूजा-विधि
- सबसे पहले हम आपको बताते हैं की इस पूजा में क्या सामग्री लगती हैं | इसमें सबसे पहले रोली, चावल, साबुत, हल्दी, फूल, नारियल, सूट, बताशे और छोटे छोटे गोबर की उपलों की माला लगती हैं|
- इस पूजा में सबसे पहले आपको एक थाली लेनी होगी| उस थाल में सारी सामग्री रखकर एक चांदी के लोटे में पानी का बर्तन रखे|
इस सब के बाद पूजा के स्थान पर जाए जहा होलिका दहन करते हैं | - वहां जाकर पूजा की सामग्री पर थोड़ा जल छिड़क कर ऊं पुण्डरीकाक्ष: पुनातु, मंत्र का जाप करे| इसके बाद हाथ में जल के साथ साथ फूल लेकर इस मंत्र का जाप करे |
ऊं विष्णु: विष्णु: विष्णु: श्रीमद्भगवतो महापुरुषस्य विष्णोराज्ञया अद्य दिवसे सौम्य नाम संवत्सरे संवत् 2073 फाल्गुन मासे शुभे शुक्लपक्षे पूर्णिमायां शुभ तिथि रविवासरे -गौत्र (अपने गौत्र का नाम लें) उत्पन्ना-(अपना नाम बोलें) मम इह जन्मनि जन्मान्तरे वा सर्वपापक्षयपूर्वक दीर्घायुविपुलधनधान्यं शत्रुपराजय मम् दैहिक दैविक भौतिक त्रिविध ताप निवृत्यर्थं सदभीष्टसिद्धयर्थे प्रह्लादनृसिंहहोली इत्यादीनां पूजनमहं करिष्यामि। - इसके बाद भगवान् गणेश का ध्यान करके हाथ में फूल और चावल ले| और ऊं गं गणपतये नम: आह्वानार्र्थे पंचोपचार गंधाक्षतपुष्पाणि समर्पयामि मंत्र का जाप करे और भगवान् गणेश पर फूल और बताशे चढ़ाए|
- इसके बाद माँ अम्बिका का ध्यान करे और उनके नाम का फूल और रोरी चावल अर्पित करे | उसके बाद भगवान् नृसिंह और प्रहलाद का ध्यान करे और उनके नाम के फूल अर्पित करे| इसके बाद होलिका के सामने दोनों हाथ जोड़कर सृक्पाभयसंत्रस्तै: कृता त्वं होलि बालिशै: अतस्त्वां पूजयिष्यामि भूते भूतिप्रदा भव:मंत्र का जाप करे|
- इसके बाद सारी सामग्री होलिका के समीप छोड़े और होलिका पर कच्चा सूट बांधे| इसके बाद होलिका को अग्नि देकर सात बार परिक्रमा करे| परिक्रमा पूरी हो जाने पर लोटे का जल अर्पित करके हाथ जोड़े|
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