कविता (हिंदी लेख)

Harivansh Rai Bachchan Kavita

हरिवंश राय बच्चन कविता : हिंदी जगत के महान कवि हरिवंश राय जी द्वारा कई कविताये की गयी है जिनमे से मज़ेदार कविताये हम आपको बताएँगे जिनसे आप काफी कुछ सीखते है वैसे तो कई महान कविओ ने आई कविताये की लेकिन हमारे हरिवंशराय बच्चन द्वारा की गयी कविताये काफी आकर्षक है वैसे हमारे कुछ और कवि मुंशी प्रेमचंद, कविता रामधारी सिंह दिनकर द्वारा की गयी कविताये भी काफी आकर्षक और विचारात्मक है |

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Famous Poems of Harivansh Rai Bachchan

बच्चन जी की प्रसिद्ध कविताये आपको फेमस पोएम्स ऑफ़ हरिवंश राय बच्चन जिसमे आप पा सकते है उनकी सभी कविताये मिलती है harivansh rai bachchan poems in hindi for children और आप पा सकते है मज़ेदार कविता :

प्यार किसी को करना लेकिन
कह कर उसे बताना क्या
अपने को अर्पण करना पर
और को अपनाना क्या

गुण का ग्राहक बनना लेकिन
गा कर उसे सुनाना क्या
मन के कल्पित भावों से
औरों को भ्रम में लाना क्या

ले लेना सुगंध सुमनों की
तोड उन्हे मुरझाना क्या
प्रेम हार पहनाना लेकिन
प्रेम पाश फैलाना क्या

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Harivansh Rai Bachchan in Hindi

हरिवंश राय बच्चन इन हिंदी जिसमे की आपको मिलती है कई मज़ेदार शायरियाँ और कविताये और कोट्स harivansh rai bachchan quotes in hindi जिनसे आप काफी कुछ सिख सकते है :

त्याग अंक में पले प्रेम शिशु
उनमें स्वार्थ बताना क्या
दे कर हृदय हृदय पाने की
आशा व्यर्थ लगाना क्या

हमारी तो कभी शादी ही न हुई,
न कभी बारात सजी,
न कभी दूल्‍हन आई,
न घर पर बधाई बजी,
हम तो इस जीवन में क्‍वांरे ही रह गए।”
दूल्‍हन को साथ लिए लौटी बारात को
दूल्‍हे के घर पर लगाकर,
एक बार पूरे जोश, पूरे जोर-शोर से

साथी, घर-घर आज दिवाली!
फैल गयी दीपों की माला
मंदिर-मंदिर में उजियाला,
किंतु हमारे घर का, देखो, दर काला, दीवारें काली!
साथी, घर-घर आज दिवाली!
हास उमंग हृदय में भर-भर
घूम रहा गृह-गृह पथ-पथ पर,
किंतु हमारे घर के अंदर डरा हुआ सूनापन खाली!

Famous Poems of Harivansh Rai Bachchan

Harivansh Rai Bachchan Poems on Love

हरिवंश राय बच्चन पोएम्स ऑन लव यानि प्यार के लिए आपको कई कविताये और भेजे अपने प्यार को harivansh rai bachchan jo beet gayi :

हा, तुम्हारी मृदुल इच्छा!
हाय, मेरी कटु अनिच्छा!
था बहुत माँगा ना तुमने किन्तु वह भी दे ना पाया!
था तुम्हें मैंने रुलाया!
स्नेह का वह कण तरल था,
मधु न था, न सुधा-गरल था,
एक क्षण को भी, सरलते, क्यों समझ तुमको न पाया!
था तुम्हें मैंने रुलाया!
बूँद कल की आज सागर,
सोचता हूँ बैठ तट पर –
क्यों अभी तक डूब इसमें कर न अपना अंत पाया!
था तुम्हें मैंने रुलाया!

अर्द्ध रात्रि में सहसा उठकर,
पलक संपुटों में मदिरा भर,
तुमने क्यों मेरे चरणों में अपना तन-मन वार दिया था?
क्षण भर को क्यों प्यार किया था?
‘यह अधिकार कहाँ से लाया!’
और न कुछ मैं कहने पाया –
मेरे अधरों पर निज अधरों का तुमने रख भार दिया था!
क्षण भर को क्यों प्यार किया था?
वह क्षण अमर हुआ जीवन में,
आज राग जो उठता मन में –
यह प्रतिध्वनि उसकी जो उर में तुमने भर उद्गार दिया था!
क्षण भर को क्यों प्यार किया था?

मानव पर जगती का शासन,
जगती पर संसृति का बंधन,
संसृति को भी और किसी के प्रतिबंधों में रहना होगा!
साथी, सब कुछ सहना होगा!
हम क्या हैं जगती के सर में!
जगती क्या, संसृति सागर में!
एक प्रबल धारा में हमको लघु तिनके-सा बहना होगा!
साथी, सब कुछ सहना होगा!
आओ, अपनी लघुता जानें,
अपनी निर्बलता पहचानें,
जैसे जग रहता आया है उसी तरह से रहना होगा!
साथी, सब कुछ सहना होगा!

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Harivansh Rai Bachchan Poems in Hindi Madhushala

मधुशाला कविता संग्रह में से जानी मानी कविताये आपको हरिवंश राय बच्चन पोएम्स इन हिंदी मधुशाला इसमें आपको मिलती है प्रसिद्ध कविताये इसके अलावा आपको मिलेंगी इसमें harivansh rai bachchan agneepath की भी कविताये :

हो जाय न पथ में रात कहीं,
मंज़िल भी तो है दूर नहीं –
यह सोच थका दिन का पंथी भी जल्दी-जल्दी चलता है!
दिन जल्दी-जल्दी ढलता है!
बच्चे प्रत्याशा में होंगे,
नीड़ों से झाँक रहे होंगे –
यह ध्यान परों में चिड़ियों के भरता कितनी चंचलता है!
दिन जल्दी-जल्दी ढलता है!
मुझसे मिलने को कौन विकल?
मैं होऊँ किसके हित चंचल? –
यह प्रश्न शिथिल करता पद को, भरता उर में विह्वलता है!
दिन जल्दी-जल्दी ढलता है!

इस पार, प्रिये मधु है तुम हो,
उस पार न जाने क्या होगा!
यह चाँद उदित होकर नभ में
कुछ ताप मिटाता जीवन का,
लहरालहरा यह शाखाएँ
कुछ शोक भुला देती मन का,
कल मुर्झानेवाली कलियाँ
हँसकर कहती हैं मगन रहो,
बुलबुल तरु की फुनगी पर से
संदेश सुनाती यौवन का,
तुम देकर मदिरा के प्याले
मेरा मन बहला देती हो,
उस पार मुझे बहलाने का
उपचार न जाने क्या होगा!
इस पार, प्रिये मधु है तुम हो,
उस पार न जाने क्या होगा!

जग में रस की नदियाँ बहती,
रसना दो बूंदें पाती है,
जीवन की झिलमिलसी झाँकी
नयनों के आगे आती है,
स्वरतालमयी वीणा बजती,
मिलती है बस झंकार मुझे,
मेरे सुमनों की गंध कहीं
यह वायु उड़ा ले जाती है;
ऐसा सुनता, उस पार, प्रिये,
ये साधन भी छिन जाएँगे;
तब मानव की चेतनता का
आधार न जाने क्या होगा!
इस पार, प्रिये मधु है तुम हो,
उस पार न जाने क्या होगा!

 

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