शायरी (Shayari)

Hafeez Jalandhari Shayari

हफ़ीज़ जालंधरी शायरी : हफ़ीज़ जी का पूरा नाम अबू अल-असर हफ़ीज़ जालंधरी था वह एक बहु प्रसिद्ध पाकिस्तान शायर थे जिनके द्वारा पाकिस्तान की  क़ौमी तराना को लिखा गया था इसके अलावा इन्होंने “शाहनामा-ए-इस्लाम” की भी रचना की थी इनका जन्म 14 जनवरी 1900 में पंजाब राज्य के जालन्धर शहर में हुआ था वह एक ग़ज़लकार और नज़्मकार के रूप में काफी प्रसिद्ध हुए फिर यह 21 दिसम्बर 1982 में 82 वर्ष की उम्र में ही इस दुनिया से हमेशा के लिए अलविदा बोल गए | हफ़ीज़ जी के द्वारा लिखी गयी कुछ ऐसी ही दिल छूने वाली शायरी बताते है की काबिले तारीफ है उनकी शायरियाँ प्यार के ऊपर है जिनको पढ़ कर लव की फीलिंग आती है तो जानिए उनके दो लाइन के शेर जो की प्रेरणादायक है |

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Hafeez Jalandhari Poems In Urdu

रफ़ीक़ों से रक़ीब अच्छे जो जल कर नाम लेते हैं
गुलों से ख़ार बेहतर हैं जो दामन थाम लेते हैं

हम ने सुना था की दोस्त वफ़ा करते हैं “फ़राज़”
जब हम ने किया भरोसा तो रिवायत ही बदल गई

दुश्मनों की जफ़ा का ख़ौफ़ नहीं
दोस्तों की वफ़ा से डरते हैं

दुश्मनों से क्या ग़रज़ दुश्मन हैं वो
दोस्तों को आज़मा कर देखिए

दोस्तों को भी मिले दर्द की दौलत या रब
मेरा अपना ही भला हो मुझे मंज़ूर नहीं

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Hafeez Jalandhari Nazam In Urdu

दोस्तों मैं कोई ख़ुदा तो न था
तुम ने फिर क्यूँ भुला दिया मुझ को

पूछा है ग़ैर से मिरे हाल-ए-तबाह को
इज़हार-ए-दोस्ती भी किया दुश्मनी के साथ

पत्थर लिए हर मोड़ पे कुछ लोग खड़े हैं
इस शहर में कितने हैं मिरे चाहने वाले

फ़ाएदा क्या सोच आख़िर तू भी दाना है “असद”
दोस्ती नादाँ की है जी का ज़ियाँ हो जाएगा

हजूम ए दोस्तों से जब कभी फुर्सत मिले
अगर समझो मुनासिब तो हमें भी याद कर लेना

Hafeez Jalandhari Shayari

Hafeez Jalandhari Poetry In Hindi

जहाँ दुनिया निगाहें फेर लेगी
वहाँ ऐ दोस्त तुमको हम मिलेंगे

जिन्दगी आप की ही नवाजिश है
वरना ऐ दोस्त हम मर गये होते

दुश्मन भी हो तो दोस्ती से पेश आये हम
बेगानगी से अपना नहीं आश्ना मिजाज

दुश्मनी जम कर करो मगर इतना याद रहे
जब भी फिर दोस्त बन जाये, शर्मिन्दा न हो

मुझको ही तलब का ढब नहीं आया
वरना ऐ दोस्त तेरे पास क्या नहीं था?

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Hafeez Jalandhari Shayari In Hindi

मेहरबानी को मुहब्बत नहीं कहते ऐ दोस्त
आह! अब मुझसे रंजिशे-बेजा भी नहीं

यह कहाँ की दोस्ती है कि बने हैं दोस्त़ नासेह
कोई चारासाज होता कोई गमगुसार होता

यह चन्द लमहे जो गुजरे तेरी रफाकत में
न जाने वह कितने वर्ष काम आयेंगे

मुझे मेरे दोस्तों से बचाइये “राही”
दुश्मनों से मैं ख़ुद निपट लूँगा

ऐ दोस्त यूँ तो हम तेरी हसरत को क्या कहें
लेकिन ये ज़िंदगी भी कोई ज़िंदगी नहीं

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