गुलज़ार पोएट्री इन हिंदी लिरिक्स : गुलज़ार का पूरा नाम समपूरन सिंह कालरा है। और वह हिंदी फ़िल्मी जगत के गीतकार के रूप में भी कार्य कर चुके है वैसे इससे पहले आप हमारे कई प्रसिद्ध कविओ जैसे ग़ालिब, इमरान प्रतापगढ़ी, कुमार विश्वास और जॉन एलिया की रचनाये पढ़ चुके है तो अब आप जानिए हमारे गुलज़ार जी की कुछ दिल छूने वाली प्रसिद्ध कविताये | इनका नाम आज भी हिंदी जगत में बड़े ही सम्मान के साथ लिया जाता है तो पढ़िए गुलज़ार जी की ही कुछ बेहतरीन कविताये |
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Gulzar’s Poetry – Gulzar Shayri On Life
कविताओ के शहंशाह गुलजार गली द्वारा कही गयी कुछ लव पोएम्स जिसे आप आज ही शेयर कर सकते है इसके अलावा अगर आप gulzar poetry in hindi, in english, in urdu, in punjabi language Font, pdf free download, two lines, 2 line, mp3, audio, youtube, video, movies, in his own voice mp3, on holi, in kill dil, a game of chess की images, Photos, Wallpapers, Pictures के बारे में यहाँ से जान सकते है :
बुरा लगा तो होगा ऐ खुदा तुझे,
दुआ में जब,
जम्हाई ले रहा था मैं–
दुआ के इस अमल से थक गया हूँ मैं !
मैं जब से देख सुन रहा हूँ,
तब से याद है मुझे,
खुदा जला बुझा रहा है रात दिन,
खुदा के हाथ में है सब बुरा भला–
दुआ करो !
अजीब सा अमल है ये
ये एक फ़र्जी गुफ़्तगू,
और एकतरफ़ा–एक ऐसे शख्स से,
ख़याल जिसकी शक्ल है
ख़याल ही सबूत है.
पिछली बार मिला था जब मैं
एक भयानक जंग में कुछ मशरूफ़ थे तुम
नए नए हथियारों की रौनक से काफ़ी खुश लगते थे
इससे पहले अन्तुला में
भूख से मरते बच्चों की लाश दफ्नाते देखा था
और एक बार …एक और मुल्क में जलजला देखा
कुछ शहरों के शहर गिरा के दूसरी जानिब
लौट रहे थे
तुम को फलक से आते भी देखा था मैंने
आस पास के सय्यारों पर धूल उड़ाते
कूद फलांग के दूसरी दुनियाओं की गर्दिश
तोड़ ताड़ के गेलेक्सीज के महवर तुम
जब भी जमीं पर आते हो
भोंचाल चलाते और समंदर खौलाते हो
बड़े ‘इरेटिक’ से लगते हो
काएनात में कैसे लोगों की सोहबत में रहते हो तुम
उफुक फलांग के उमरा हुजूम लोगों का
कोई मीनारे से उतरा, कोई मुंडेरों से
किसी ने सीढियां लपकीं, हटाई दीवारें–
कोई अजाँ से उठा है, कोई जरस सुन कर!
गुस्सीली आँखों में फुंकारते हवाले लिये,
गली के मोड़ पे आकर हुए हैं जमा सभी!
हर इक के हाथ में पत्थर हैं कुछ अकीदों के
खुदा कि जात को संगसार करने आये हैं!!
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Gulzar Romantic Poetry – गुलज़ार की शानदार कविताएं
गुलज़ार रोमांटिक पोएट्री : यदि आप किसी से प्यार करते है और उन्हें रोमांटिक अंदाज़ में कविताये भेजना चाहे तो हमारे पास से जान सकते है ऐसी ही कुछ बेहतरीन रोमांटिक कविताये :
मौजजे होते हैं,– ये बात सुना करते थे!
वक्त आने पे मगर–
आग से फूल उगे, और ना जमीं से कोई दरिया
फूटा
ना समंदर से किसी मौज ने फेंका आँचल,
ना फलक से कोई कश्ती उतरी!
आजमाइश की थी काल रात खुदाओं के लिये
काल मेरे शहर में घर उनके जलाये सब ने!!
मौजजा कोई भी उस शब ना हुआ–
जितने भी लोग थे उस रोज इबादतगाह में,
सब के होठों पर दुआ थी,
और आँखों में चरागाँ था यकीं का
ये खुदा का घर है,
जलजले तोड़ नहीं सकते इसे, आग जला सकती नहीं!
सैकड़ों मौजजों कि सब ने हिकायात सुनी थीं
सैकड़ों नामों से उन सब ने पुकारा उसको ,
गैब से कोई भी आवाज नहीं आई किसी की,
ना खुदा कि — ना पुलिस कि !!
सब के सब भूने गए आग में, और भस्म हुये .
मौजजा कोई भी उस शब् ना हुआ!!
अपनी मर्जी से तो मजहब भी नहीं उसने चुना था,
उसका मज़हब था जो माँ बाप से ही उसने
विरासत में लिया था—
अपने माँ बाप चुने कोई ये मुमकिन ही कहाँ है
मुल्क में मर्ज़ी थी उसकी न वतन उसकी रजा से
वो तो कुल नौ ही बरस का था उसे क्यों चुनकर,
फिर्कादाराना फसादात ने कल क़त्ल किया–!!
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गुलज़ार पोएट्री बुक्स : पोएट्री बुक्स में से आप गुलज़ार की कुछ जानी-मानी प्रसिद्ध कविताये पढ़े और आज ही शेयर करे अपने दोस्तों को फेसबुक या व्हाट्सएप्प पर :
आग का पेट बड़ा है!
आग को चाहिए हर लहजा चबाने के लिये
खुश्क करारे पत्ते,
आग कर लेती है तिनकों पे गुजारा लेकिन–
आशियानों को निगलती है निवालों की तरह,
आग को सब्ज हरी टहनियाँ अच्छी नहीं लगतीं,
ढूंढती है, कि कहीं सूखे हुये जिस्म मिलें!
उसको जंगल कि हवा रास बहुत है फिर भी,
अब गरीबों कि कई बस्तियों पर देखा है हमला करते,
आग अब मंदिरों-मस्जिद की गजा खाती है!
लोगों के हाथों में अब आग नहीं–
आग के हाथों में कुछ लोग हैं अब
शहर में आदमी कोई भी नहीं क़त्ल हुआ,
नाम थे लोगों के जो, क़त्ल हुये.
सर नहीं काटा, किसी ने भी, कहीं पर कोई–
लोगों ने टोपियाँ काटी थीं कि जिनमें सर थे!
और ये बहता हुआ सुर्ख लहू है जो सड़क पर,
ज़बह होती हुई आवाजों की गर्दन से गिरा था
Best Gulzar Poetry In Hindi On Life Two Lines
बस चन्द करोड़ों सालों में
सूरज की आग बुझेगी जब
और राख उड़ेगी सूरज से
जब कोई चाँद न डूबेगा
और कोई जमीं न उभरेगी
तब ठंढा बुझा इक कोयला सा
टुकड़ा ये जमीं का घूमेगा
भटका भटका
मद्धम खकिसत्री रोशनी में !
मैं सोचता हूँ उस वक्त अगर
कागज़ पे लिखी इक नज़्म कहीं उड़ते उड़ते
सूरज में गिरे
तो सूरज फिर से जलने लगे !!
अपने”सन्तूरी”सितारे से अगर बात करूं
तह-ब-तह छील के आफ़ाक़ कि पर्तें
कैसे पहुंचेगी मेरी बात ये अफ़लाक के उस पर भला ?
कम से कम “नूर की रफ़्तार”से भी जाए अगर
एक सौ सदियाँ तो ख़ामोश ख़लाओं से गुजरने में लगेंगी
कोई माद्दा है मेरी बात में तो
“नून”के नुक्ते सी रह जाएगी “ब्लैक होल”गुजर के
क्या वो समझेगा?
मैं समझाऊंगा क्या ?
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