भीष्म अष्टमी के बारे में : महाभारत के योद्धा भीष्म पितामह जी वीर योद्धा थे और ये भीष्म अष्टमी उन्ही की जयंती के रूप में मनाई जाती है भीष्म पितामह ने इसी दिन अपने प्राणों को त्यागा था ये व्रत उन्ही के लिए रखा जाता है यह व्रत माघ माह शुक्ल पक्ष की अष्टमी को रखा जाता है यह बहुत धार्मिक होता है यह बहुत महत्वपूर्ण व्रत है इस व्रत को रखने से सारे पापो का नाश हो जाता है माना जाता है की इस दिन भीष्म पितामह की स्मृति में जो भी व्यक्ति उनका श्राद्ध रखता है तिल और जल के साथ तो उन्हें संतान तथा मोक्ष की प्राप्ति अवश्य होती है और उनके सभी पाप नष्ट हो जाते है |
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Bhishma Ashtami Significance
भीष्म अष्टमी सिग्निफ़िकेन्स मतलब की भीष्म अष्टमी का महत्व वैसे भारत देश के कई राज्यो में भीष्म अष्टमी का बहुत महत्व है क्योंकि यह अष्टमी भीष्म पितामह के लिए मनाई जाती है इसी दिन भीष्म पितामह ने अपना शरीर त्यागा था भीष्म को इच्छा म्रत्यु का वरदान राजा शांतनु द्वारा प्राप्त था कहा जाता है जो कोई भी इस व्रत को रखता है इस व्रत को करने से पितृदोष से मुक्ति मिलती है और भीष्म पितामह का श्राद्ध करता है उसे संतान प्राप्ति होती है और मोक्ष की प्राप्ति अवश्य होती है और उसके सभी पास नष्ट हो जाते है |
Ashtami 2020 Date
अष्टमी में इस बारे यानि माघ के महीने में महत्वपूर्ण अष्टमी है भीष्म अष्टमी इस दिन भीष्म जी की पूजा होती है और हिंदी पंचांग के अनुसार यह अष्टमी माघ माह शुक्ल पक्ष में अष्टमी को पड़ती है और 2020 में भीष्म अष्टमी 4 फरवरी को होगी |
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भीष्म अष्टमी की कथा
पौराणिक कथा के अनुसार भीष्म पितामह का असली नाम देवव्रत था वह राजा शान्तनु के पुत्र थे तभी की बात है की राजा शान्तनु की भेट एक मत्स्यगंधा (सत्यवती) नामक से युवती हुई जो की हरिदास केवट की पुत्री थी वह दिखने में बहुत सुन्दर थी तो राजा शान्तनु उनके चेहरे पर मोहित हो गए जिसके लिए उन्होंने हरिदास के पास जाकर सत्यवती का हाथ मांगते है परंतु हरिदास उनके सामने शर्त रखता है की अगर जो बच्चा सत्यवती की कोख से जन्मेगा आप उसे ही अपने राज्य का उत्तराधिकारी घोषित करेंगे तो राजा शान्तनु ने इस बात से इन्कार कर दिया कुछ दिन बाद वह सत्यवती को भुला न सके और व्याकुल रहने लगे तो भीष्म पितामह ने उनके व्याकुल रहने का कारण जाना तो वे खुद हरिदास के पास गए और गंगाजल हाथ में लक्जर ब्रह्मचर्य रहने की शपथ ली तभी से उन्हें भीष्म पितामह के नाम से जाना जाने लगा तभी राजा शान्तनु को उनकी इस बात को जानकार अति प्रसन्नता हुई और उन्होंने भीष्म को इच्छामृत्यु का वरदान किया उसके बाद महाभारत के युद्ध समाप्ति के बाद जान सूर्यदेव दक्षिणायन से उत्तरायण हुए तभी भीष्म पितामह ने अपना शरीर त्यागा तभी से उस दिन को ही भीष्म पितामह का निर्वाण दिवस माना गया |
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