Bhagwan Mahaveer Ke Anmol Vachan : भगवान महावीर जो की जैन धर्म के संस्थापक है वह भी एक सिद्ध पुरुष थे और जैन धर्म उन्ही के सिद्धांतो पर चलता है उन्ही के बताया गए सिद्धांतो से जैन धर्म चलाया जाता है इसीलिए हम आपको उनके कुछ प्रेरणादायक विचारो के बारे में बताते है जो की आपके लिए बहुत प्रेरणादायक होंगे | जैन धर्म में महावीर जी को भगवान की उपाधि दी जाती है और उनकी पूजा की जाती है | इसीलिए उनके बताये गए विचार हम सबके लिए बहुत अधिक महत्व रखते है जिसकी मदद से आप महावीर जी के चरित्र के बारे में काफी कुछ जान सकते है |
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महावीर स्वामी उपदेश
Mahaveer Swami Updesh : महावीर स्वामी जी के उपदेश हमारे लिए काफी प्रेरणादायक होते है इसीलिए आप उन उपदेशो को जानने के लिए हमारे द्वारा बताये गए इन उपदेशो को पढ़े और अपने दोस्तों से भी शेयर करे :
किसी का भला करके उस भलाई को भूल जाना ही सबसे बड़ी उपलब्धि है जो लोग आपका बुरा करे उसे भूल जाना ही बुद्दिमानी है
हर जीवित व्यक्ति के प्रति दया भाव रखो,घृणा करने से तो सर्वनाश होता है
मनुष्य के दुखी होने की वजह खुद की गलतिया ही है जो मनुष्य अपनी गलतियों पर काबू पा सकता है वही मनुष्य सच्चे सुख की प्राप्ति भी कर सकता है
कठिन परिस्थितयो में घबराना नहीं चाहिए बल्कि धैर्य रखना चाहिए
एक व्यक्ति जलते हुए जंगल के मध्य में एक ऊँचे वृक्ष पर बैठा है वह सभी जीवित प्राणियों को मरते हुए देखता है लेकिन वह यह नहीं समझता की जल्द ही उसका भी यही हस्र होने वाला है . वह आदमी मूर्ख है
आपका इस दुनिया में कोई शत्रु नहीं है बल्कि असली शत्रु तो आपके भीतर मौजूद हैं और वे हैं- क्रोध,अहंकार,लोभ और घृणा
सबसे बड़ा धर्म अहिंसा है
इस नश्वर रूपी संसार में आत्मा सदैव अकेली ही आती है और अकेले ही इस दुनिया को छोड़ जाती है आत्मा का कोई भी साथ नही देता है और न ही कोई उसका मित्र होता है
अहिंसा ही सबसे बड़ा धर्म है जो सबके कल्याण की कामना करता है
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भगवान महावीर वाणी
Bhagwan Mahaveer Vani : भगवान् महावीर जी की वाणी द्वारा कुछ ऐसे सत्य वचन निकलते है जिससे इंसान बहुत कुछ सीख सकता है यदि आप उनके ऐसे विचारो को जानना चाह रहे है तो आप बिलकुल सही जगह है :
हर जीवित प्राणी ईश्वर निर्मित है इनके प्रति दयाभाव ही सच्ची अहिंसा है क्यूकी घृणा से केवल मनुष्य का विनाश हो सकता है और किसी भी प्राणी का सम्मान उसके प्रति अहिंसा का भाव ही है
क्रोध हमेशा अधिक क्रोध को जन्म देता है और क्षमा और प्रेम हमेशा अधिक क्षमा और प्रेम को जन्म देते हैं
सभी जीवों के प्रति सम्मान रखना अहिंसा है
सत्य ही दुनिया का सबसे सच है किसी भी इन्सान को किसी भी परिस्थति में भी सत्य का साथ नही छोड़ना चाहिए और एक बेहतर इन्सान तभी बन सकते है जब हर स्थिति में सत्य का साथ दे
पर्यावरण का महत्वपूर्ण सिद्धांत यह है कि एक आप ही इसके अकेले तत्व नहीं हो
जो व्यक्ति खुद पर विजय पा लेता है फिर उसे किसी भी विजय या पराजय की कामना नही रह जाती है इसलिए लाख शत्रु से अच्छा खुद पर विजय पाना चाहिए
स्वयं पर विजय प्राप्त करना लाखों दुश्मनों पर विजय प्राप्त करने से बेहतर है
किसी आत्मा की सबसे बड़ी भूल खुद के असली रूप को नहीं पहचानना है और यह ज्ञान से ही प्राप्त हो सकती है
भगवान महावीर के सिद्धांत
Bhagwan Mahaveer Ke Siddhant : जैन धर्म भगवान महावीर जी के सिद्धांतो के ऊपर ही टिका हुआ है इसीलिए उनके कुछ सिद्धांत आप नीचे बताई गयी जानकारी में पढ़ सकते है :
स्वयं पर विजय प्राप्त करना लाखों दुश्मनों पर विजय प्राप्त करने से बेहतर है
दुसरो की वस्तुओ को चुराना या किसी के वस्तु को पाने की कामना भी पाप है अर्थात हमे जो ईश्वर ने दिया है उसी में खुश रहना चाहिए
प्रत्येक जीव आजाद है और कोई किसी पर निर्भर नहीं करता
जियो और दूसरों को भी जीने दो; किसी को दुःख मत दो, सभी प्राणियों का जीवन उनके लिए प्रिय ही होता है
लगाव और घृणा कर्म का मूल कारण हैं, और कर्म मोह से निकलती है. कर्म जन्म और मृत्यु का मूल कारण है, और इन्हें दुख का स्रोत कहा जाता है. कोई भी अपने अतीत के कर्म – प्रभाव से बच नहीं सकता
शांति और आत्म-नियंत्रण अहिंसा है
मनुष्य के सबसे बड़े दुश्मन खुद के भीतर होते है जो क्रोध, घमंड, लालच, आसक्ति और नफरत के रूप में रहते है इसलिए जो मनुष्य खुद के इन दुर्गुणों पर विजयी पा लेता है फिर उसे बाहरी दुश्मनों से लड़ने की आवश्कयता नही पड़ती है
आत्मा अकेली आती है और अकेली जाती है उसका न कोई साथ देता है और न ही मित्र बनता है
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भगवान महावीर के संदेश
Bhagwan Mahaveer Ke Sandesh : महावीर जी अपने भक्तो को कुछ सन्देश अपने देते है जिनमे से उनके कुछ सन्देश और वचन इस प्रकार है जिन्हे पढ़ कर आप उनके बारे में काफी कुछ जान सकते है :
आपकी आत्मा से परे कोई भी शत्रु नहीं है . असली शत्रु आपके भीतर रहते हैं , वो शत्रु हैं क्रोध , घमंड , लालच ,आसक्ति और नफरत
जीओ और जीने दो,किसी को दुःख मत दो क्योंकि सभी का जीवन उनके लिए प्रिय होता है
ईमानदारी से, एक व्यक्ति शारीरिक, मानसिक और भाषाई स्पष्टवादिता और सामंजस्यपूर्ण प्रवृत्ति प्राप्त कर सकता है, यानी कथनी और करनी में अनुरूपता
भगवान का अलग से कोई अस्तित्व नहीं है.कोई भी सही दिशा में अपना श्रेष्ठ प्रयास करके देव तत्व को प्राप्त कर सकता है
भोजन आत्म-नियंत्रण के लिए सबसे बड़ी बाधा उत्पन्न करता है; यह आलस को जन्म देता है
एक आदमी जलते हुए जंगल में एक ऊँचे पेड़ पर बैठा था. वह सभी जीवीत प्राणियों को मरते हुए देख रहा था, लेकिन वह यह नही समझ पाया की जल्द ही उसकी भी वही दशा होने वाली है. मुर्ख है ऐसे आदमी
किसी के अस्तित्व मिटाने की अपेक्षा उसे शांति से जीने दो और खुद भी शांति से जियो तभी आपका कल्याण संभव है
जो व्यक्ति खुद पर नियन्त्रण रख पाता है वह कभी भी हिसंक नही हो सकता है अर्थात खुद पर नियन्त्रण रखना ही अहिंसा के मार्ग पर चलना है
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