बेखुद देहलवी शायरी : बेखुद देहलवी जी का जन्म 21 मार्च 1863 में राजस्थान के भरतपुर जिले में हुआ था इनका पूरा नाम सईद वहीदुद्दीन अहमद था ये एक प्रसिद्ध उर्दू के शायर के नाम से प्रसिद्ध थे और इनकी मृत्यु 2 अक्टूबर 1955 में हुई | तो आज हम आपको बेखुद जी द्वारा कही गयी कुछ मज़ेदार शायरी बताते है जिसकी वजह से इन्हें एक शायर के रूप में जाना जाता है इनकी द्वारा कही गयी दिल छूने वाली शायरी और दो लाइन के शेर हमारे लिए प्रेरणादायक है इन्होंने प्यार के ऊपर भी कई लव संबंधी शायरियां की है जिन्हें आप अपने दोस्तों के साथ शेयर कर सकते है |
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देहलवी की शायरी : अगर आप मशहूर शायर देहलवी जी की प्रसिद्ध शायरियां जानना चाहे तो हमारे इस पोस्ट के माध्यम से जान सकते है :
वह कुछ मुस्कुराना, वह कुछ झेंप जाना
जवानी अदाएं सिखाती है क्या-क्या
भूले से कहा मान भी लेते हैं किसी का
हर बात में तकरार की आदत नहीं अच्छी
जादू है या तिलिस्म* है तुम्हारी जुबान में
तुम झूठ कह रहे थे, मुझे एतिबार था
तेरे नकशे-कदम मैंने, यहाँ पाया, वहाँ पाया
तेरे कूचे में जब चाहा, जहाँ चाहा जबीं* रख दी
या तो है देखने में नजर का कुसूर
या कुछ बदल गया है जमाने का हाल अब
जफाएं* तुम किए जाओ, वफाएं मैं किए जाऊं
तुम अपने फन में कामिल* हो, मैं अपने फन में यकता* हूँ
हमें पीने से मतलब है जगह की कैद क्या ‘बेखुद’
उसी का नाम काबा रख दिया, बोतल जहा रख दी
हर चीज पै बहार थी, हर शै* में हुस्न था
दुनिया जवान थी मेरे अहदे – शबाब* में
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बेखुद देहलवी की मशहूर शायरियाँ : फेमस सिंगर बेखुद देहलवी की मसहूर शायरियो को जानने के लिए आप हमारे नीचे दी हुई शायरियो को पढ़ सकते है :
बात वो कहिए कि जिस बात के सौ पहलू हों
कोई पहलू तो रहे बात बदलने के लिए
जमाने की अदावत* का सबब थी दोस्ती जिनकी
अब उनको दुश्मनी है हमसे, दुनिया इसको कहते हैं
दी क़सम वस्ल* में उस बुत को ख़ुदा की तो कहा
तुझ को आता है ख़ुदा याद हमारे होते
हो लिए जिस के हो लिए ‘बेख़ुद’
यार अपना तो ये हिसाब रहा
जादू है या तिलिस्म तुम्हारी ज़बान में
तुम झूट कह रहे थे मुझे एतिबार था
जवाब सोच के वो दिल में मुस्कुराते हैं
अभी ज़बान पे मेरी सवाल भी तो न था
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बेखुद देहलवी शायरी इन हिंदी : अगर आप बेखुद देहलवी की फेमस शायरियाँ जानना चाहे तो आप हमारी पोस्ट से हिंदी फॉण्ट में जान सकते है :
मौत आ रही है वादे पे या आ रहे हो तुम
कम हो रहा है दर्द दिल-ए-बे-क़रार का
न देखे होंगे रिंद-ए-ला-उबाली तुम ने बेख़ुद से
कि ऐसे लोग अब आँखों से ओझल होते जाते हैं
न देखना कभी आईना भूल कर देखो
तुम्हारे हुस्न का पैदा जवाब कर देगा
नमक भर कर मिरे ज़ख़्मों में तुम क्या मुस्कुराते हो
मेरे ज़ख़्मों को देखो मुस्कुराना इस को कहते हैं
राह में बैठा हूँ मैं तुम संग-ए-रह* समझो मुझे
आदमी बन जाऊँगा कुछ ठोकरें खाने के बाद
रक़ीबों* के लिए अच्छा ठिकाना हो गया पैदा
ख़ुदा आबाद रखे मैं तो कहता हूँ जहन्नम को
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