Basant Panchami 2020 – Vasant Ya Basant Panchami Par Lekh : बसंत पंचमी का दिन हिन्दू धर्म के लिए बहुत महत्व रखता है यह त्यौहार पूरे हिन्दुस्तान में बड़े ही धूमधाम के साथ मनाया जाता है यह दिन सर्दी के मौसम के जाने तथा बसंत ऋतु के आने का प्रतीक होता है | इसीलिए बसंत ऋतु हर साल में पड़ती है जो हम बहुत ही धूमधाम के साथ मनाते है इसीलिए हम आपको बसंत पंचमी २०१८ के उपलक्ष्य में जानकारी देते है की यह क्यों मनाई जाती है इसके बारे में और क्या जानकारी है ? तथा इसका हमारे जीवन में क्या महत्व है ? इसके बारे में जानकारी पाने के लिए आप हमारी इस पोस्ट को पढ़ सकते है |
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बसंत पंचमी कब है 2020 – बसंत पंचमी कितने तारीख को है – मुहूर्त व समय
Basant Panchami kab Hai 2020 – Basant Panchami Kitne Tarikh Ko Hai – Muhurt Va Samay : बसंत पंचमी को हम वसंत पंचमी या श्रीपंचमी के नाम से भी जानते है यह एक हिन्दू त्यौहार है इस दिन संगीत व विद्या की देवी सरस्वती जी की पूजा की जाती है | बसंत पंचमी का दिन हर साल जैसे २०१५, २०१६, २०१७ में मनाया जाता है और साल २०१८ में यह दिन Date या दिनांक २२ जनवरी के दिन ही पड़ेगा तथा इस दिन माता सरस्वती की पूजा का शुभ मुहूर्त 07:17 से 12:32 बजे तक ही रहेगा इसी शुभ मुहूर्त में आपको माता सरस्वती की पूजा विधिपूर्वक कर लेनी है |
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बसंत पंचमी के बारे में – बसंत पंचमी क्यों मनाई जाती है
वैसे तो यह दिन केवल इसीलिए मनाया जाता है क्योकि इस दिन शीत ऋतु को विदा करने तथा बसंत ऋतु का स्वागत करने का दिन होता है लेकिन इसके अलावा इसके पीछे एक पौराणिक कथा भी है जिसमे की सरस्वती की जी की पूजा की जाती है |
सृष्टि की रचना के समय भगवान विष्णु को अपने द्वारा किये गए सृजन में कुछ कमी दिखाई दी जिसके लिए उन्होंने भगवान ब्रह्मा से बात की तब ब्रह्मा जी ने भगवान विष्णु की अनुमति से अपने कमंडल से पृथ्वी पर जल छिड़का जैसे ही पृथ्वी पर जल छिड़का तभी पृथ्वी पर कम्पन्न होने लगा | तब वृक्षों के बीच एक शक्ति का जन्म हुआ यह शक्ति एक देवी थी जो की चतुर्भुज तथा बहुत सुन्दर थी उनके एक हाथ में वीणा तथा दूसरे हाथ में वर मुद्रा थी और बाकि दो हाथो में पुस्तक तथा माला थी |
ब्रह्मा जी ने उस स्त्री से वीणा बजाने का आग्रह किया जैसे ही उन्होंने वह वीणा बजायी संसार के सभी जीव जन्तुओ को बानी प्राप्त हो गयी | तभी भगवान ब्रह्मा ने उन्हें वाणी की देवी सरस्वती नाम दिया इसके अलावा देवी सरस्वती को बागीश्वरी, भगवती, शारदा, वीणावादनी और वाग्देवी तथ अन्य नामो से भी जाना जाता है | जिस दिन इनका जन्म हुआ उस दिन बसंत की पंचमी तिथि थी इसीलिए इस दिन को माता सरस्वती की जन्म तिथि के उपलक्ष्य के रूप में भी मनाते है तथा इनकी पूजा की जाती है |
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बसंत पंचमी का महत्व
बसंत पंचमी का अपने में अलग ही महत्व है एक तो इसी दिन से शीत ऋतु की विदाई तथा बसंत ऋतु का आगमन हो जाता है इसीलिए इसका महत्व भी काफी बढ़ जाता है लोग इस दिन पीले रंग के वस्त्र पहनते है तथा इस दिन पतंग उड़ाने का अपने में एक अलग महत्व है | लेकिन इसके पीछे एक पौराणिक कथा भी है जो की त्रेता युग से जुडी है जो कथा इस प्रकार है –
यह बात की तब की है जब सीता जी का हरण हो चूका था और भगवान् राम माता सीता की खोज में दक्षिण दिशा की तरफ चले जा रहे थे | वह चलते-2 दंडकारण्य नामक स्थान पर पहुंचे जहाँ पर शबरी नामक भीलनी रहती थी जहाँ रहते हुए वह बहुत समय से भगवान् राम जी का ही इंतज़ार कर रही थी | जैसे ही राम जी उनकी कुटिया में पहुंचे तो वह उन्हें देख कर सुध-बुध खो बैठी लेकिन उनके पास भगवान् राम को खिलाने के लिए कुछ भी नहीं था | उसके बाद उन्होंने कुछ बेर निकाले लेकिन वह बेर खट्टे है या मीठे इसका ज्ञान उस भीलनी को नहीं था इसीलिए उन्होंने हर एक बेर को चखकर भगवान राम को खिलाया |
पौराणिक कथाओ के अनुसार भगवान राम बसंत पंचमी के दिन ही वहां आकर बैठे थे और शबरी के हाथो से बेर खाये थे | इस समय दंडकारण्य का वह क्षेत्र गुजरात तथा मध्य प्रदेश के राज्यों में फैला हुआ है वही पर शबरी माता का मंदिर भी है और वहां के निवासी आज भी उसी मंदिर को पूजते है |
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