कविता (हिंदी लेख)

पिता पर कविता – Poem on Father in Hindi

आज के समय में पिता का जीवन में बहुत महत्व हैं| पिता के बिना पुत्र का कोई महत्व नहीं| आज के समय में हर किसी का यह मानना हैं की माँ बच्चे को पिता से ज्यादा प्रेम करती हैं पर ऐसा कुछ नहीं हैं| पिता अपने बच्चे से बहुत प्रेम करते हैं पर कभी जताते नहीं हैं| पिता का महत्व माँ से कई ज्यादा होता हैं क्योकि बच्चे को शिष्टाचार पिता से ही सीखने को मिलती हैं| आज के इस आर्टिकल में हम आपके लिए पिता पर कविता, हिंदी कविता ऑन फादर, पिता के प्यार पर काव्य, 4 lines poem on father, पता का प्रेम कविता इन हिंदी, इंग्लिश, उर्दू, गुजरती, तमिल, तेलगु, आदि लाए हैं जिससे पढ़कर आप अपने पापा को सुना सकते हैं|

यह भी देंखे : नारी सम्मान कविता

पिता के जन्मदिन पर कविता

आज तो पापा मंजिल भी है, दम भी है परवाजों में
एक आवाज नहीं है लेकिन, इतनी सब आवाजों में
सांझ की मेरी सैर में हम-तुम, साथ में मिल कर गाते थे
कच्चे-पक्के अमरूदों को, संग-संग मिल कर खाते थे
उन कदमों के निशान पापा, अब भी बिखरे यहीं-कहीं
कार भी है, एसी भी है, पर अब सैरों में मज़ा नहीं
कोई नहीं जो आंसू पोछें, बोले पगली सब कर लेंगे
पापा बेटी मिलकर तो हम, सारे रस्ते सर कर लेंगे
इतनी सारी उलझन है और पप्पा तुम भी पास नहीं
ये बिटिया तो टूट चुकी है, अब तो कोई आस नहीं
पर पप्पा ! तुम घबराना मत, मैं फिर भी जीत के आउंगी
मेरे पास जो आपकी सीख है, मैं उससे ही तर जाऊंगी
फिर से अपने आंगन में हम साथ में मिल कर गाएंगे
देखना अपने मौज भरे दिन फिर से लौट के आएंगे

पिता और पुत्री पर कविता

पिता एक उम्मीद है, एक आस है
परिवार की हिम्मत और विश्वास है,
बाहर से सख्त अंदर से नर्म है
उसके दिल में दफन कई मर्म हैं।
पिता संघर्ष की आंधियों में हौसलों की दीवार है
परेशानियों से लड़ने को दो धारी तलवार है,
बचपन में खुश करने वाला खिलौना है
नींद लगे तो पेट पर सुलाने वाला बिछौना है।
पिता जिम्मेवारियों से लदी गाड़ी का सारथी है
सबको बराबर का हक़ दिलाता यही एक महारथी है,
सपनों को पूरा करने में लगने वाली जान है
इसी से तो माँ और बच्चों की पहचान है।
पिता ज़मीर है पिता जागीर है
जिसके पास ये है वह सबसे अमीर है,
कहने को सब ऊपर वाला देता है ए संदीप
पर खुदा का ही एक रूप पिता का शरीर है।

पिता पर कविता ओम व्यास

पिता के जन्मदिन पर कविता

जलती धूप में वो आरामदायक छाँव है
मेलों में कंधे पर लेकर चलने वाला पाँव है,
मिलती है जिंदगी में हर ख़ुशी उसके होने से
कभी भी उल्टा नहीं पड़ता ‘पिता’ वो दांव है।
उसकी रातें भी जग कर कट जाती हैं
परिवार के सपनों के लिए,
कितना भी हो ‘पिता’ मजबूर ही सही
पर हमारी जिंदगी में इक ठाठ लिए रहता है।
न रात दिखाई देती है
न दिन दिखाई देते हैं,
‘पिता’ को तो बस परिवार के
हालात दिखाई देते हैं।
कमर झुक जाती है बुढापे में उसकी
सारी जवानी जिम्मेवारियों का बोझ ढोकर,
खुशियों की ईमारत खड़ी कर देता है ‘पिता’
अपने लिए बुने हुए सपनों को खो कर।
परिवार के चेहरे पे ये जो मुस्कान हंसती है,
‘पिता’ ही है जिसमें सबकी जान बस्ती है।
बिता देता है एक उम्र
औलाद की हर आरजू पूरी करने में,
उसी ‘पिता’ के कई सपने
बुढापे में लावारिस हो जाते हैं।

माता पिता पर कविता

सख्त सी आवाज में कहीं प्यार छिपा सा रहता है
उसकी रगों में हिम्मत का एक दरिया सा बहता है,
कितनी भी परेशानियां और मुसीबतें पड़ती हों उस पर
हंसा कर झेल जाता है ‘पिता’ किसी से कुछ न कहता है।
तोतली जुबान से निकला पहला शब्द
उसे सारे जहाँ की खुशियाँ दे जाता है,
बच्चों में ही उसे नजर आती है जिंदगी अपनी
उनके लिए तो ‘पिता’ अपनी जिंदगी दे जाता है।
उसके लफ्जों को कभी गलत मत समझना
कि उसके हर अलफ़ाज़ में एक गहराई होती है,
न समझना उसकी हरकतों को अपने लिए परेशानियाँ तुम
तुम्हारे लिए तो ‘पिता’ ने दिल में एक दुनिया बसाई होती है।
उसके हाथ की लकीरें बिगड़ गयी
अपने बच्चों की किस्मतें बनाते-बनाते,
उसी ‘पिता’ की आंखों में आज
कई आकाशों के तारे चमक रहे थे।

पिता को श्रद्धांजलि कविता

पिता पर कविता

पापा मेरी नन्ही दुनिया, तुमसे मिल कर पली-बढ़ी
आज तेरी ये नन्ही बढ़कर, तुझसे इतनी दूर खड़ी
तुमने ही तो सिखलाया था, ये संसार तो छोटा है
तेरे पंखों में दम है तो, नील गगन भी छोटा है
कोई न हो जब साथ में तेरे, तू बिलकुल एकाकी है
मत घबराना बिटिया, तेरे साथ में पप्पा बाकी हैं
पीछे हटना, डरना-झुकना, तेरे लिए है नहीं बना
आगे बढ़ कर सूरज छूना, तेरी आंख का है सपना
तुझको तो सूरज से आगे, एक रस्ते पर जाना है
मोल है क्या तेरे वजूद का दुनिया को बतलाना है

मेरे पापा पर कविता

बचपन में गुजर गए पिता की
याद का कोई ठोस मूलधन भी
नहीं है मेरे पास
जिस पर
यादों का कोई ब्याज
जोड़-अरज पाऊं मैं
पिता के बारे में अलबत्ता
मां के बयानों को कूट-छांटकर
मेरे मन ने
जो इक छवि गढ़ी है पिता की
उसमें पिता का
जो अक्स उभरता है झक भोरा
उस हिसाब से
उन जैसों के लिए
इस सयानी दुनिया का कोई सांचा
कतई फिट नहीं बैठता
जहां वे रह-गुजर कर सकते
मां की कभी भूल से भी
पिता की डांट-डपट खाने की
हसरत नहीं हो पाई पूरी
और मेरा बाल-सुलभ अधिकार
जो बनता था
पिता की डांट-धमक का
चेतक धन पाने का
उसके दैनिक हिसाब का एक हर्फ भी
नहीं लिख सके थे पिता मेरे नाम
और इस मोर्चे पर
साफ कर्तव्यच्युत सा रह गये थे वे
अब जबकि
मेरी डांट-धमक से
मेरे बच्चों की दैनन्दिनी
और पत्नी की
अनियतकालिक बही-खाते के पन्नों को
भरा-पूरा देखती हैं
मेरी जर्जर काय स्मृतिपूरित पचासी वर्षीया मां
तो उनका हिय जुरा जाता है
मानो उस डायरी और बही-खाते के
हर एक अक्षर का
खुद भी एक हिस्सा बन गई हों वे ।

पापा के जन्मदिन पर कविता

मेरा साहस मेरी इज्जत मेरा सम्मान है पिता।
मेरी ताकत मेरी पूँजी मेरी पहचान है पिता।
घर की इक-इक ईट में शामिल उनका खून पसीना।
सारे घर की रौनक उनसे सारे घर की शान पिता।
मेरी शोहरत मेरा रूतबा मेरा है मान पिता।
मुझको हिम्मत देने वाले मेरा हैं अभिमान पिता।
सारे रिश्ते उनके दम से सारे नाते उनसे हैं।
सारे घर के दिल की धड़कन सारे घर की जान पित।
शायद रब ने देकर भेजा फल ये अच्छे कर्मों का।
उसकी रहमत उसकी नेमत उसका है वरदान पिता।

यह भी देंखे : Best Poetry In Urdu Font

पिता की याद में कविता

आज भी वो प्यारी मुस्कान याद आती है।
जो मेरी शरारतों से पापा के चेहरे पर खिल जाती थी।
अपने कन्धों पर बैठाकर वो मुझे दुनिया की सैर कराते थे।
जहां भी जाते मेरे लिए ढेर सारे तोहफे लाते थे।
मेरे हर जन्मदिन पर वो मुझे साथ मंदिर ले जाते थे।
मेरे हर रिजल्ट का बखान पूरी दुनिया को बताते थे।
मेरी जिंदगी के सारे सपने उनकी आँखों में पल रहे थे।
मेरे लिए खुशियों का आशियाना वो हर पल बन रहे थे।
मेरे सपने उनके साथ चले गए मेरे पापा मुझे छोड़ गए।
अब आँखों में शरारत नहीं बस आंसू ही दीखते हैं।
एक बार तो वापस आ जाओ पापा।
हैप्पी फादर्स डे तो सुन जाओ पापा।
(कर्णिका पाठक जी द्वारा रचित)

Contents

1 Comment

1 Comment

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Most Popular

you can contact us on my email id: harshittandon15@gmail.com

Copyright © 2016 कैसेकरे.भारत. Bharat Swabhiman ka Sankalp!

To Top