Tulsidaas Ki Kavitaye | तुलसीदास पोयम्स इन हिंदी : तुलसीदास जी एक महान कवि तथा साहित्यकार है जिन्होंने रामचरितमानस जैसी पुस्तक लिखी है इनका जन्म 1511 ईंसवी में कासगंज जिले के सोरो के शूकरक्षेत्र में हुआ था | इनके द्वारा कई तरह के दोहे भी लिखे गए है तथा इनकी कृतियां आज भी हमारे भारत में बोली जाती है यह हिंदी जगत के एक महान कवि थे | इसीलिए हम आपको इनके द्वारा कुछ बेहतरीन कविताओं के बारे में जानकारी देते है जिनकी मदद से आप इनके बारे में जानकारी पा सकते है तथा इन्हे अपने दोस्तों के साथ शेयर भी कर सकते है |
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तुलसीदास की रचनाएँ कालक्रमानुसार
तुलसीदास जी की रचनाये जानने के लिए आप नीचे देख सकते है और उनकी दोहे व कविताये जान सकते है इसके अलावा आप tulsidas poems in hindi wikipedia, tulsidas ke dohe on ramayana, tulsidas poems in hindi with bhavam, tulsi dohawali, vinay patrika by tulsidas in hindi, dohe of surdas in hindi गीतावली तुलसीदास व तुलसीदास की dohe के बारे में यहाँ से जान सकते है :
- रामचरितमानस
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- कुंडलिया रामायण
- राम शलाका
- संकट मोचन
- करखा रामायण
- रोला रामायण
- झूलना
- छप्पय रामायण
- कवित्त रामायण
- कलिधर्माधर्म निरुपण
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तुलसीदास जी के पद – कवितावली की व्याख्या
अवधेस के द्वारे सकारे गई सुत गोद में भूपति लै निकसे । अवलोकि हौं सोच बिमोचन को ठगि-सी रही, जे न ठगे धिक-से ॥ ‘तुलसी’ मन-रंजन रंजित-अंजन नैन सुखंजन जातक-से । सजनी ससि में समसील उभै नवनील सरोरुह-से बिकसे ॥ तन की दुति श्याम सरोरुह लोचन कंज की मंजुलताई हरैं । अति सुंदर सोहत धूरि भरे छबि भूरि अनंग की दूरि धरैं ॥ दमकैं दँतियाँ दुति दामिनि ज्यों किलकैं कल बाल बिनोद करैं । अवधेस के बालक चारि सदा ‘तुलसी’ मन मंदिर में बिहरैं ॥ सीस जटा, उर बाहु बिसाल, बिलोचन लाल, तिरीछी सी भौंहैं । तून सरासन-बान धरें तुलसी बन मारग में सुठि सोहैं ॥ सादर बारहिं बार सुभायँ, चितै तुम्ह त्यों हमरो मनु मोहैं । पूँछति ग्राम बधु सिय सों, कहो साँवरे-से सखि रावरे को हैं ॥ सुनि सुंदर बैन सुधारस-साने, सयानी हैं जानकी जानी भली । तिरछै करि नैन, दे सैन, तिन्हैं, समुझाइ कछु मुसुकाइ चली ॥ ‘तुलसी’ तेहि औसर सोहैं सबै, अवलोकति लोचन लाहू अली । अनुराग तड़ाग में भानु उदै, बिगसीं मनो मंजुल कंजकली ॥
बीर महा अवराधिये, साधे सिधि होय। सकल काम पूरन करै, जानै सब कोय।1। बेगि, बिलंब न कीजिये लीजै उपदेस। बीज महा मंत्र जपिये सोई, जो जपत महेस।2। प्रेम-बारि-तरपन भलो, घृत सहज सनेहु। संसय-समिध, अगिनि-छमा, ममता-बलि देहु।3। अघ -उचाटि, मन बस करै, मारै मद मार। आकरषै सुख-संपदा-संतोष-बिचार।4। जिन्ह यहि भाँति भजन कियो, मिले रघुपति ताहि। तुलसिदास प्रभुपथ चढ्यौ, जौ लेहु निबाहि।5।
हरि! तुम बहुत अनुग्रह कीन्हों। साधन-धाम बिबुध दुरलभ तनु, मोहि कृपा करि दीन्हों।1। कोटहुँ मुख कहि जात न प्रभुके, एक एक उपकार। तदपि नाथ कछु और माँगिहौं, दीजै परम उदार।2। बिषय-बारि मन -मीन भिन्न नहिं होत कबहुँ पल एक। ताते सहौं बिपति अति दारून, जनमत जोनि अनेक।3। कृपा-डोरि बनसी पद अंकुस, परस प्रेम-मृदु-चारो। एहि बिधि बेेधि हरहु मेरो दुख, कौतुक राम तिहारो।4। हैं श्रुति-बिदित उपाय सकल सुर, केहि केहि दीन निहारै। तुलसिदास येहि जीव मोह-रजु, जेहि बाँध्यो सोइ छोरै।5।
तुलसीदास के पद अर्थ सहित – तुलसीदास के पद हिंदी
यह बिनती रघुबीर गुसाईं। और आस-विस्वास-भरोसो, हरो जीव-जड़ताई।1। चहौं न सुगति, सुमति, संपति कछु, रिधि-सिधि बिपुल बड़ाई। हेतु-रहित अनुराग राम-पद बढै़ अनुदिन अधिकाई।2। कुटिल करम लै जाहिं मोहि, जहँ जहँ अपनी बरिआई। तहँ तहँ जनि छिन छोह छाँड़ियो, कमठ-अंडकी नाईं।3। या जगमें जहँ लगि या तनुकी प्रीति प्रतीति सगाई। तें सब तुलसिदास प्रभु ही सों होहिं सिमिटि इक ठाईं।4।
जानकी-जीवनकी बलि जैहौं। चित कहै रामसीय-पद परिहरि अब न कहूँ चलि जैहौं।1। उपजी उर प्रतीति सपनेहुँ सुख, प्रभु-पद-बिमुख न पैहौं। मन समेत या तनके बासिन्ह, इहै सिखावन दैहौं।2। श्रवननि और कथा नहिं सुनिहौं, रसना और न गैहौं। रोकिहौं नसन बिलोकत औरहिं, सीस ईस ही नैहौं।3। नातो-नेह नाथसों करि सब नातों-नेह बहैहौं। यह ठर -भार ताहि तुलसी जग जाकेा दास कहैहौं।4।
कस न करहु करूना हरे! दुखहरन मुरारि! त्रिबिधताप-संदेह-सोक-संसय-भय-हारि।1। इक कलिकाल-जनित मल, मतिमंद, मलिन-मन। तेहिपर प्रभु नहिं कर सँभार, केहि भाँति जियै जन।2। सब प्रकार समरथ प्रभो, मैं सब बिधि दीन। यह जिय जानि द्रवौ नहीं, मैं करम बिहीन।3। भ्रमत अनेक जोनि रघुपति, पति आन न मोरे। दुख-सुख सहौं , रहौं सदा सरनागत तोरे।4। तो सम देव न कोउ कृपालु, समझौं मनमाहीं। तुलसिदास हरि तोषिये, सो साधन नाहीं।5।
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दोहावली तुलसीदास – Tulsidas Small Poems In Hindi
महाराज रामादर्यो धन्य सोई। गरूअ, गुनरासि, सरबग्य, सुकृती, सूर, सील,-निधि, साधु तेहि सम न कोई।1। उपल ,केवट, कीस,भालु, निसिचर, सबरि, गीध सम-दम -दया -दान -हीने।। नाम लिये राम किये पवन पावन सकल, नर तरत तिनके गुनगान कीने।2। ब्याध अपराध की सधि राखी कहा, पिंगलै कौन मति भगति भेई। कौन धौं सेमजाजी अजामिल अधम, कौन गजराज धौं बाजपेयी।3। पांडु-सुत, गोपिका, बिदुर, कुबरी, सबरि, सुद्ध किये, सुद्धता लेस कैसो। प्रेम लखि कृस्न किये आने तिनहूको, सुजस संसार हरिहर को जैसो।4। कोल, खस, भील जवनादि खल राम कहि, नीच ह्वै ऊँच पद को न पायो। दीन-दुख- दवन श्रीवन करूना-भवन, पतित-पावन विरद बेद गायो।5। मंदमति, कुटिल , खल -तिलक तुलसी सरिस, भेा न तिहुँ लोक तिहुँ काल कोऊ। नाकी कानि पहिचानि पन आवनो, ग्रसित कलि-ब्याल राख्यो सरन सोऊ।6।
अबलौं नसानी, अब न नसैहौं। राम-कृपा भव-निसा सिरानी, जागे फिरि न डसैहौं।1। पायेउ नाम चारू चिंतामनि, उर-कर तें न खसैहों। स्यामरूप सुचि रूचिर कसौटी, चित कंचनहिं कसैहौं।2। परबस जानि हँस्यो इन इंद्रिन, निज बस ह्वै न हँसैहौं। मन-मधुकर पनक तुलसी रघुपति-पद-कमल बसैहौं।3।
है नीको मेरो देवता कोसलपति राम। सुभग सरारूह लोचन, सुठि सुंदर स्याम।1। सिय-समेत सोहत सदा छबि अमित अनंग। भुज बिसाल सर धनु धरे, कटि चारू निषंग।2। बलिपूजा चाहत नहीं , चाहत एक प्रीति। सुमिरत ही मानै भलो, पावन सब रीति।3। देहि सकल सुख, दुख दहै, आरत-जन -बंधु। गुन गहि, अघ-औगुन हरै, अस करूनासिंधु।4। देस-काल -पूरन सदा बद बेद पुरान। सबको प्रभु, सबमें बसै, सबकी गति जान।5। को करि कोटिक कामना , पूजै बहु देव। तुलसिदास तेहि सेइये, संकर जेहि सेव।6।
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