Chhath Puja 2020- Puja Vidhi Tatha Mahatv : भारत देश त्यौहारों का देश है और उसी तरह इस देश में छठ पूजा नाम से भी एक त्यौहार मनाया जाता है इस दिन माता छठी की पूजा की जाती है और कई लोग इस दिन उनके लिए व्रत भी रखते है | शास्त्रों के अनुसार मान्यता है की इस दिन पूजा करने से मनुष्य सुख-समृद्धि, आरोग्यता, गुणवान पुत्र प्राप्ति व पुत्र की दीर्घायु का वरदान मिलता है | कहा जाता है माता छठी भगवन सूर्य देव की बहन है जिसकी वजह से इस दिन माता छठी की पूजा के साथ भगवान सूर्यदेव की भी पूजा अर्चना की जाती है इसीलिए हम आपको छठ पूजा के बारे में जानकारी देते है की इस दिन किसकी पूजा अर्चना की जाती है और इसका क्या महत्व है ?
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छठ पूजा कब है 2020
Chhath Puja Kab Hai 2020 : हिन्दू पंचांग के अनुसार छठ पर्व हर साल कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी को मनाया जाता है और यह पर्व चार दिन तक कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी से लेकर सप्तमी तक मनाया जाता है | इस बार यानि की साल 2020 में यह 24 से लेकर 27 अक्टूबर तक मनाया जायेगा इसमें 26 अक्टूबर को षष्ठी है तो इसी दिन छठ पूजा का आयोजन किया जाता है |
- मंगलवार, 24 अक्टूबर 2020, स्नान और खाने का दिन है।
- बुद्धवार, 25 अक्टूबर , 2020 उपवास का दिन है जो 36 घंटे के उपवास के बाद सूर्यास्त के बाद समाप्त हो जाता है।
- गुरुवार, 26 अक्टूबर , 2020 संध्या अर्घ्य का दिन है जो की संध्या पूजन के रूप में जाना जाता।
- शुक्रवार, 27 अक्टूबर 2020 सूर्योदय अर्घ्य और पारान या उपवास के खोलने का दिन है।
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छठ पूजा की विधि
Chhath Puja Ki Vidhi : यह चार दिन पर्व होता है इस दिन को सभी लोग बड़े ही धूमधाम से मनाते है और इस दिन पूजा भी की जाती है इसीलिए हम आपको छठी की पूजा करने का तरीका बताते है की किस तरह से आपको इस दिन व्रत रखना है तथा कैसे ये त्यौहार मानना है :
- प्रथम पड़ाव नहाय खाय : यह पहला दिन होता है जिस दिन हमें केवल नहाना और खाना होता है इस दिन शुद्ध शाकाहारी खाना खाने का प्रावधान होता है | इस दिन सभी लोगो को अपने घर में सही प्रकार से साफ़ सफाई करके रखनी चाहिए |
- दूसरा पड़ाव लोहंडा और खरना : इस दिन व्रत रखने का प्रावधान होता है और शाम के समय व्रत को तोड़ने के लिए गन्ने के रस अथवा गुड़ से बनी हुई खीर को खाकर ही व्रत तोडना चाहिए तथा उस खीर को सबको प्रसाद के तौर पर बाँटना चाहिए |
- तीसरा पड़ाव संध्या अर्घ्य : इस दिन भगवान सूर्य देव और माता छठी की पूजा अर्चना की जाती है इस दिन पूजा की सामग्री को लकड़ी के डाले में रख कर पवित्र नदी के घाट पर ले जाना चाहिए तथा संध्या के समय में भगवान सूर्य देव को अर्घ्य दिया जाता है उसके बाद घर आकर माता छठी के गीत गाने का प्रावधान है |
- चोथा पड़ाव उषा अर्घ्य : यह इस पर्व का आखरी दिन होता है अर्थात इस दिन सुबह के समय उगते हुए सूरज को देख कर अर्घ्य दिया जाता है और माता घाट के किनारे पर माता छठी को विदा किया जाता है तथा हाथ जोड़ कर अपना वर मांगने प्रावधान है |
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छठ पूजा का इतिहास | छठ पूजा का महत्व
Chhath Puja Ka Itihaas : पुराणों के अनुसार बहुत पहले एक प्रियवद नामक राजा था जिसके कोई संतान नहीं थी जिसके दुखी होकर राजा और उनकी पत्नी मालिनी से महर्षि कश्यप से संतान प्राप्ति का उपाय पूछा तब ऋषि ने पुत्रेष्टि यज्ञ की सलाह दी | तब राजा और रानी ने विधिपूर्वक यज्ञ को पूरा किया और उसके बाद उन्हें एक संतान के रूप में पुत्र प्राप्ति हुई लेकिन उनका वह पुत्र पैदा होते ही मर गया |
इससे निराश होकर राजा और रानी और आत्मदाह का निश्चय किया जब वह अपने प्राण त्याग रहे थे तभी वहां एक देवी प्रकट हुई और बोली की हे राजा मैं ब्रह्मा जी की मानस कन्या देवसेना हूँ लेकिन मैं सृष्टि की मूल प्रवृत्ति के छठे अंश में पैदा हुई थी इसीलिए मेरा नाम षष्ठी भी है | इसीलिए आप लोग मेरी पूजा करे जिसके बाद आपको संतान प्राप्ति अवश्य होगी उसके बाद राजा और रानी पूरे मन से देवी षष्ठी की पूजा अर्चना करते है उसके बाद उन्हें संतान की प्राप्ति हो जाती है जिस दिन यह पूजा की गयी थी उस दिन कार्तिक शुक्ल षष्ठी थी जिस कारन यह पर्व इसी माह मनाया जाता है |
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