भारत के इतिहास में बहुत से महान कवी थे पर इन सब में से जिसका नाम सबसे ऊपर आता हैं वो श्री कालिदास थे| वे महान संत और कवी थे| उन्होंने अपनी जीवन शैली में बहुत सी कविताए और श्लोक लिखे हैं जो की आज के समय में भी प्रसिद्ध हैं| वे एक नाट्यकार भी थे| वे भारत की पौराणिक कथाओं के बारे में कविता बनाते थे जो एक नाटक का रूप ले लेती थी| आज हम आपको कालिदास की कुछ बेहद्द ही प्रसिद्ध कविताओं, कालिदास के नाटक, hindi poet कालिदास, बायोग्राफी, कालिदास के दोहे अर्थ सहित बताएंगे जिन्हे पढ़कर आप भी प्रसन्न हो जाएंगे|
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Poem Of Kalidasa in Hindi
कवि कालिदास की रचना आज के समय में भी बहुत प्रसिद्ध हैं|कालिदास की कविताये बहुत ही मन मोह लेने वाली थी|कालिदास के नाटक पौराणिक कथाओं और दर्शन पर आधारिक थे | ऋतुसंहार कालिदास की एक बेहद ही प्रसिद्ध कविता हैं| हमारे इस पोस्ट द्वारा हम आपको कालिदास पोयम्स लिस्ट, कालिदास की रचनाएँ, Kalidas Poems In Hindi Language Font, बताएंगे|तो आइये हम आपको कुछ अच्छे कालिदास के दोहे इन हिंदी में जानकारी देंगे |
तस्या: किंचित्करधृतमिव प्राप्तवानीरशाखं
नीत्वा नीलं सलिलवसनं मुक्तरोघोनितम्बम्।
प्रस्थानं ते कथमपि सखे! लम्बमानस्य भावि
शातास्वादो विवृतजघनां को विहातुं समूर्थ:।।
हे मेघ, गम्भीरा के तट से हटा हुआ नीला
जल, जिसे बेंत अपनी झुकी हुई डालों से
छूते हैं, ऐसा जान पड़ेगा मानो नितम्ब से
सरका हुआ वस्त्र उसने अपने हाथों से
पकड़ा रक्खा है।
हे मित्र, उसे सरकाकर उसके ऊपर
लम्बे-लम्बे झुके हुए तुम्हारा वहाँ से हटना
कठिन ही होगा, क्योंकि स्वाद जाननेवाला
कौन ऐसा है जो उघड़े हुए जघन भाग का
त्याग कर सके।
त्वन्निष्यन्दोच्छ्वसितवसुधागन्धसंपर्करम्य:
स्त्रोतोरन्ध्रध्वनितसुभगं दन्तिभि: पीयमान:।
नीचैर्वास्यत्युपजिगमिषोर्देवपूर्व गिरिं ते
शीतो वायु: परिणमयिता काननोदुम्बराणाम्।।
मेघ, तुम्हारी झड़ी पड़ने से भपारा छोड़ती
हुई भूमि की उत्कट गन्ध के स्पर्श से जो
सुरभित है, अपनी सूँड़ों++ के नथुनों में
सुहावनी ध्वनि करते हुए हाथी जिसका पान
करते हैं, और जंगली गूलर जिसके कारण
गदरा गए हैं, ऐसा शीतल वायु देवगिरि
जाने के इच्छुक तुमको मन्द-मन्द थपकियाँ
देकर प्रेरित करेगा।
Mahakavi Kalidas Poem In Hindi
तस्मिन्काले नयनसलिलं योषितां खण्डिताना
शान्तिं नेयं प्रणयिभिरतो वर्त्म भानोस्त्यजाशु।
प्रालेयास्त्रं कमलवदनात्सोपि हर्तुं नलिन्या:
प्रत्यावृत्तस्त्वयि कररुधि स्यादनल्पाभ्यसूय:।।
रात्रि में बिछोह सहनेवाली खंडिता नायिकाओं
के आँसू सूर्योदय की बेला में उनके प्रियतम
पोंछा करते हैं, इसलिए तुम शीघ्र सूर्य का
मार्ग छोड़कर हट जाना, क्योंकि सूर्य भी
कमलिनी के पंकजमुख से ओसरूपी आँसू
पोंछने के लिए लौटे होंगे। तुम्हारे द्वारा हाथ
रोके जाने पर उनका रोष बढ़ेगा।
गम्भीराया: पयसि सरितश्चेतसीव प्रसन्ने
छायात्मापि प्रकृतिसुभगो लप्स्यते ते प्रवेशम्।
तस्यादस्या: कुमुदविशदान्यर्हसि त्वं न धैर्या-
न्मोधीकर्तु चटुलशफरोद्वर्तनप्रेक्षितानि।।
गम्भीरा के चित्तरूपी निर्मल जल में तुम्हारे
सहज सुन्दर शरीर का प्रतिबिम्ब पड़ेगा ही।
फिर कहीं ऐसा न हो कि तुम उसके कमल-
से श्वेत और उछलती शफरी-से चंचल
चितवनों की ओर अपने धीरज के कारण
ध्यान न देते हुए उन्हें विफल कर दो।
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Kalidas Best Poem In Hindi
गच्छन्तीनां रमणवसतिं योषितां तत्र नक्तं
रुद्धालोके नरपतिपथे सूचिभेद्यैस्तमोभि:।
सौदामन्या कनकनिकषस्निग्धया दर्शयोर्वी
तोयोत्सर्गस्तनितमुखरो मा स्म भूर्विक्लवास्ता:।।
वहाँ उज्जयिनी में रात के समय प्रियतम के
भवनों को जाती हुई अभिसारिकाओं को
जब घुप्प अँधेरे के कारण राज-मार्ग पर
कुछ न सूझता हो, तब कसौटी पर कसी
कंचन-रेखा की तरह चमकती हुई बिजली
से तुम उनके मार्ग में उजाला कर देना।
वृष्टि और गर्जन करते हुए, घेरना मत,
क्योंकि वे बेचारी डरपोक होती हैं।
तां कस्यांचिद~भवनवलभौ सुप्तपारावतायां
नीत्वा रात्रिं चिरविलसिनात्खिन्नविद्युत्कलत्र:।
दृष्टे सूर्ये पुनरपि भवान्वाहयेदध्वशेषं
मन्दायन्ते न खलु सुहृदामभ्युपेतार्थकृत्या:।।
देर तक बिलसने से जब तुम्हारी बिजली
रूपी प्रियतमा थक जाए, तो तुम वह रात्रि
किसी महल की अटारी में जहाँ कबूतर
सोते हों बिताना। फिर सूर्योदय होने पर
शेष रहा मार्ग भी तय करना। मित्रों का
प्रयोजन पूरा करने के लिए जो किसी काम
को ओढ़ लेते हैं, वे फिर उसमें ढील नहीं
करते।
Kalidas Ki Poem in Hindi
पादन्यासक्वणितरशनास्तत्र लीलावधूतै
रत्नच्छायाखचितवलिभिश्चामरै: क्लान्तहस्ता:।
वेश्यास्त्वत्तो नखपदसुखान्प्राप्य वर्षाग्रबिन्दू –
नामोक्ष्यन्ते त्वयि मधुकरश्रेणिदीर्घान्कटाक्षान्।।
वहाँ प्रदोष-नृत्य के समय पैरों की ठुमकन
से जिनकी कटिकिंकिणी बज उठती है, और
रत्नों की चमक से झिलमिल मूठोंवाली
चौरियाँ डुलाने से जिनके हाथ थक जाते हैं,
ऐसी वेश्याओं के ऊपर जब तुम सावन के
बुन्दाकड़े बरसाकर उनके नखक्षतों को सुख
दोगे, तब वे भी भौंरों-सी चंचल पुतलियों से
तुम्हारे ऊपर अपने लम्बे चितवन चलाएँगी।
पश्चादुच्चैर्भुजतरुवनं मण्डलेनाभिलीन:
सान्ध्यं तेज: प्रतिनवजपापुष्परक्तं दधान:।
नृत्यारम्भे हर पशुपतेरार्द्र नागाजिनेच्छां
शान्तोद्वेगस्तिमितनयनं दृष्टभक्तिर्भवान्या।।
आरती के पश्चात आरम्भ होनेवाले शिव के
तांडव-नृत्य में तुम, तुरत के खिले जपा
पुष्पों की भाँति फूली हुई सन्ध्या की ललाई
लिये हुए शरीर से, वहाँ शिव के ऊँचे उठे
भुजमंडल रूपी वन-खंड को घेरकर छा जाना।
इससे एक ओर तो पशुपति शिव रक्त
से भीगा हुआ गजासुरचर्म ओढ़ने की इच्छा
से विरत होंगे, दूसरी ओर पार्वती जी उस
ग्लानि के मिट जाने से एकटक नेत्रों से
तुम्हारी भक्ति की ओर ध्यान देंगी।
Poem Of Kalidas In Hindi Language
भर्तु: कण्ठच्छविरिति गणै: सादरं वीक्ष्यमाण:
पुण्यं यायास्त्रिभुवनगुरोर्धाम चण्डीश्वरस्य।
धूतोद्यानं कुवलयरजोगन्धिभिर्गन्धवत्या-
स्तोयक्रीडानिरतयुवतिस्नानतिक्तै र्मरुद~भि:।।
अपने स्वामी के नीले कंठ से मिलती हुई
शोभा के कारण शिव के गण आदर के
साथ तुम्हारी ओर देखेंगे। वहाँ त्रिभुवन-
पति चंडीश्वर के पवित्र धाम में तुम जाना।
उसके उपवन के कमलों के पराग से
सुगन्धित एवं जलक्रीड़ा करती हुई युवतियों
के स्नानीय द्रव्यों से सुरभित गन्धवती की
हवाएँ झकोर रही होंगी।
अप्यन्यस्मिञ्जलधर! महाकालमासाद्य काले
स्थातव्यं ते नयनविषयं यावदत्येति भानु:।
कुर्वन्संध्याबलिपटहतां शूलिन: श्लाघनीया-
मामन्द्राणां फलमविकलं लप्स्यते गर्जितानाम्।।
हे जलधर, यदि महाकाल के मन्दिर में
समय से पहले तुम पहुँच जाओ, तो तब
तक वहाँ ठहर जाना जब तक सूर्य आँख से
ओझल न हो जाए।
शिव की सन्ध्याकालीन आरती के
समय नगाड़े जैसी मधुर ध्वनि करते हुए
तुम्हें अपने धीर-गम्भीर गर्जनों का पूरा फल
प्राप्त होगा।
Kalidas Poems In Hindi With Meaning
दीर्घीकुर्वन्पटु मदकलं कूजितं सारसानां
प्रत्यूषेषु स्फुटितकमलामोदमैत्रीकषाय:।
यत्र स्त्रीणां हरति सुरतग्लानिमंगानुकूल:
शिप्रावात: प्रियतम इव प्रार्थनाचाटुकार:।।
जहाँ प्रात:काल शिप्रा का पवन खिले कमलों
की भीनी गन्ध से महमहाता हुआ, सारसों
की स्पष्ट मधुर बोली में चटकारी भरता
हुआ, अंगों को सुखद स्पर्श देकर, प्रार्थना
के चटोरे प्रियतम की भाँति स्त्रियों के
रतिजनित खेद को दूर करता है।
जालोद्गीर्णैरुपचितवपु: केशसंस्कारधूपै-
र्बन्धुप्रीत्या भवनशिखिभिर्दत्तनृत्योपहार:।
हर्म्येष्वस्या: कुसुमसुरभिष्वध्वखेदं नयेथा
लक्ष्मीं पर्श्यल्ललितवनितापादरागाद्दितेषु।।
उज्जयिनी में स्त्रियों के केश सुवासित
करनेवाली धूप गवाक्ष जालों से बाहर उठती
हुई तुम्हारे गात्र को पुष्ट करेगी, और घरों
के पालतू मोर भाईचारे के प्रेम से तुम्हें नृत्य
का उपहार भेंट करेंगे। वहाँ फूलों से
सुरभित महलों में सुन्दर स्त्रियों के महावर
लगे चरणों की छाप देखते हुए तुम मार्ग की
थकान मिटाना।
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Poem Written By Kalidasa In Hindi
वेणीभूतप्रतनुसलिलालसावतीतस्य सिन्धु:
पाण्डुच्छाया तटरुहतरूभ्रंशिभिर्जीर्णपर्णै:।
सौभाग्यं ते सुभग! विरहावस्थया व्यञ्जयन्ती
कार्श्यं येन त्यजति विधिना स त्वयैवोपपाद्य:।।
जिसकी पतली जलधारा वेणी बनी हुई हैं,
और तट के वृक्षों से झड़े हुए पुराने पत्तों से
जो पीली पड़ी हुई है, अपनी विरह दशा से
भी जो प्रवास में गए तुम्हारे सौभाग्य को
प्रकट करती है, हे सुभग, उस निर्विन्ध्या की
कृशता जिस उपाय से दूर हो वैसा अवश्य
करना।
प्राप्यावन्तीनुदयनकथाकोविदग्रामवृद्धा-
न्पूर्वोद्दिष्टामनुसर पुरीं श्री विशालां विशालाम्।
स्वल्पीभूते सुचरितफले स्वर्गिणां गां गतानां
शेषै: पुण्यैर्हृतमिव दिव: कान्तिमत्खण्डमेकम्।।
गाँवों के बड़े-बूढ़े जहाँ उदयन की कथाओं
में प्रवीण हैं, उस अवन्ति देश में पहुँचकर,
पहले कही हुई विशाल वैभववाली उज्जयिनी
पुरी को जाना।
सुकर्मों के फल छीजने पर जब स्वर्ग के
प्राणी धरती पर बसने आते हैं, तब बचे हुए
पुण्य-फलों से साथ में लाया हुआ स्वर्ग का
ही जगमगाता हुआ टुकड़ा मानो उज्जयिनी
है।
About Kalidas a Hindi Poet
वक्र: पन्था यदपि भवत: प्रस्थितस्योत्तराशां
सौधोत्संगप्रणयविमुखो मा स्म भूरुज्जयिन्या:।
विद्युद्दामस्फुरित चकितैस्तत्र पौरांगनानां
लोलापांगैर्यदि न रमसे लोचनैर्वञ्चितो∙सि।।
यद्यपि उत्तर दिशा की ओर जानेवाले तुम्हें
मार्ग का घुमाव पड़ेगा, फिर भी उज्जयिनी
के महलों की ऊँची अटारियों की गोद में
बिलसने से विमुख न होना। बिजली चमकने
से चकाचौंध हुई वहाँ की नागरी स्त्रियों के
नेत्रों की चंचल चितवनों का सुख तुमने न
लूटा तो समझना कि ठगे गए।
वीचिक्षोभस्तनितविहगश्रेणिकाञ्चीगुणाया:
संसर्पन्त्या: स्खलितसुभगं दर्शितावर्तनाभे:।
निर्विन्ध्याया: पथि भव रसाभ्यन्तर: सन्निपत्य
स्त्रीणामाद्यं प्रणयवचनं विभ्रमो हि प्रियेषु।।
लहरों के थपेड़ों से किलकारी भरते हुए
हंसों की पंक्तिरूपी करधनी झंकारती हुई,
अटपट बहाव से चाल की मस्ती प्रकट
करती हुई, और भँवररूपी नाभि उघाड़कर
दिखाती हुई निर्विन्ध्या से मार्ग में मिलकर
उसका रस भीतर लेते हुए छकना।
प्रियतम से स्त्री की पहली प्रार्थना
श्रृंगार-चेष्टाओं द्वारा ही कही जाती है।
नीचैराख्यं गिरिमधिवसेस्तत्र विश्रामहेतो-
स्त्वसंपर्कात्पिुलकितमिव प्रौढपुष्पै: कदम्बै:।
य: पण्यस्त्रीरतिपरिमलोद~गारिभिर्नागराणा-
मुद्दामानि प्रथयति शिलावेश्मभिर्यौ वनानि।।
Kalidas Kavita In Hindi
विश्राम के लिए वहाँ ‘निचले’ पर्वत पर
बसेरा करना जो तुम्हारा सम्पर्क पाकर खिले
फूलोंवाले कदम्बों से पुलकित-सा लगेगा।
उसकी पथरीली कन्दराओं से उठती हुई
गणिकाओं के भोग की रत-गन्ध पुरवासियों
के उत्कट यौवन की सूचना देती है।
विश्रान्त: सन्ब्रज वननदीतीरजालानि सिञ्च-
न्नुद्यानानां नवजलकणैर्यू थिकाजालकानि।
गण्डस्वेदापनयनरुजा क्लान्तकर्णोत्पलानां
छायादानात्क्षणपरिचित: पुष्पलावीमुखानाम्।।
विश्राम कर लेने पर, वन-नदियों के किनारों
पर लगी हुई जूही के उद्यानों में कलियों को
नए जल की बूँदों से सींचना, और जिनके
कपोलों पर कानों के कमल पसीना पोंछने
की बाधा से कुम्हला गए हैं, ऐसी फूल
चुननेवाली स्त्रियों के मुखों पर तनिक छाँह
करते हुए पुन: आगे चल पड़ना।
पाण्डुच्छायोपवनवृतय: केतकै: सूचिभिन्नै-
नींडारम्भैर्गृ हबलिभुजामाकुलग्रामचैत्या:।
त्वय्यासन्ने परिणतफलश्यामजम्बूवनान्ता:
संपत्स्यन्ते कतिपयदिनस्थायिहंसा दशार्णा:।।
हे मेघ, तुम निकट आए कि दशार्ण देश में
उपवनों की कटीली रौंसों पर केतकी के
पौधों की नुकीली बालों से हरियाली छा
जाएगी, घरों में आ-आकर रामग्रास खानेवाले
कौवों द्वारा घोंसले रखने से गाँवों के वृक्षों
पर चहल-पहल दिखाई देने लगेगी, और
पके फलों से काले भौंराले जामुन के वन
सुहावने लगने लगेंगे। तब हंस वहाँ कुछ ही
दिनों के मेहमान रह जाएँगे।
तेषां दिक्षु प्रथितविदिशालक्षणां राजधानीं
गत्वा सद्य: फलमविकलं कामुकत्वस्य लब्धा।
तीरोपान्तस्तनितसुभगं पास्यसि स्वादु यस्मा-
त्सभ्रूभंगं मुखमिव पयो वेत्रवत्याश्चलोर्मि।।
उस देश की दिगन्तों में विख्यात विदिशा
नाम की राजधानी में पहुँचने पर तुम्हें अपने
रसिकपने का फल तुरन्त मिलेगा – वहाँ तट
के पास मठारते हुए तुम वेत्रवती के तरंगित
जल का ऐसे पान करोगे जैसे उसका
भ्रू-चंचल मुख हो।
Famous Hindi Poets And Their Poems
नीपं दृष्ट्वां हरितकपिशं केसरैरर्धरूढे-
राविर्भूप्रथममुकुला: कन्दलीश्चानुकच्छम्।
जग्ध्वारण्येष्वधिकसुरभिं गन्धमाघ्राय चोर्व्या:
सारंगास्ते जललवमुच: सूचयिष्यन्ति मार्गम्।।
हे मेघ, जल की बूँदें बरसाते हुए तुम्हारे
जाने का जो मार्ग है, उस पर कहीं तो भौरे
अधखिले केसरोंवाले हरे-पीले कदम्बों को
देखते हुए, कहीं हिरन कछारों में भुँई-केलियों
के पहले फुटाव की कलियों को टूँगते हुए,
और कहीं हाथी जंगलों में धरती की उठती
हुई उग्र गन्ध को सँघते हुए मार्ग की सूचना
देते मिलेंगे।
उत्पश्चामि द्रुतमपि सखे! मत्प्रियार्थं यियासो:
कालक्षेपं ककुभरसुरभौ पर्वते पर्वते ते।
शुक्लापांगै: सजलनयनै: स्वागतीकृत्य केका:
प्रत्युद्यात: कथमपि भववान्गन्तुमाशु व्यवस्येतु।।
हे मित्र, मेरे प्रिय कार्य के लिए तुम जल्दी
भी जाना चाहो, तो भी कुटज के फूलों से
महकती हुई चोटियों पर मुझे तुम्हारा अटकाव
दिखाई पड़ रहा है।
सफेद डोरे खिंचे हुए नेत्रों में जल
भरकर जब मोर अपनी केकावाणी से
तुम्हारा स्वागत करने लगेंगे, तब जैसे भी
हो, जल्दी जाने का प्रयत्न करना।
यहाँ भी देखे : Jaun Elia Poetry in Hindi
कालिदास कविता नागार्जुन
कर्तुं यच्च प्रभवति महीमुच्छिलीन्ध्रामवन्ध्यां
तच्छत्वा ते श्रवणसुभगं गर्जितं मानसोत्का:।
आकैलासाद्विसकिसलयच्छेदपाथेयवन्त:
सैपत्स्यन्ते नभसि भवती राजहंसा: सहाया:।।
जिसके प्रभाव से पृथ्वी खुम्भी की टोपियों
का फुटाव लेती और हरी होती है, तुम्हारे
उस सुहावने गर्जन को जब कमलवनों में
राजहंस सुनेंगे, तब मानसरोवर जाने की
उत्कंठा से अपनी चोंच में मृणाल के
अग्रखंड का पथ-भोजन लेकर वे कैलास
तक के लिए आकाश में तुम्हारे साथी बन
जाएँगे।
आपृच्छस्व प्रियसखममुं तुग्ड़मालिग्ड़च शैलं
वन्द्यै: पुंसां रघुपतिपदैरकिड़तं मेखलासु।
काले काले भवति भवतो यस्य संयोगमेत्य
स्नेहव्यक्तिश्चिरविरहजं मुञ्चतो वाष्पमुष्णम्।।
अब अपने प्यारे सखा इस ऊँचे पर्वत से
गले मिलकर विदा लो जिसकी ढालू चट्टानों
पर लोगों से वन्दनीय रघुपति के चरणों की
छाप लगी है, और जो समय-समय पर
तुम्हारा सम्पर्क मिलने के कारण लम्बे विरह
के तप्त आँसू बहाकर अपना स्नेह प्रकट
करता रहता है।
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