Mahabharat Ke Karn Se Judi Rochak Baatein : सूर्यपुत्र कर्ण एक ज्ञानी पुरुष और महान योद्धा थे वह पवित्र ग्रन्थ महाभारत के एक महत्वपूर्ण किरदारों में से एक कर्ण का जीवन बहुत ही प्रेरणादायक और प्रभावशाली है | आज तक आप लोगो ने कर्ण का नाम केवल महा दानवीरो के नाम से ही सुना होगा इसीलिए हिन्दू धर्म में बहुत कम लोग है जो की कर्ण के बारे में जानते है की वो कौन थे ? इसीलिए हम आपको कर्ण के बारे में कुछ रोचक और महत्वपूर्ण बाते बताते है जिससे की आप उनके बारे में काफी कुछ जान सकते है |
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दानवीर कर्ण की कहानी
Daanveer Karn Ki Kahaani : कर्ण पुरे संसार में सबसे बड़ा दानवीर माना जाता था क्योकि उनसे जो कुछ भी दान माँगा जाता था वह हसते हसते अपनी वह प्रिय से प्रिय चीज़ भी दान कर देते थे इसीलिए हम आपको उनकी कुछ महत्वपूर्ण बाते बताते है जो की आपके लिए काफी महत्वपूर्ण है :
कर्ण का जन्म
कर्ण का जन्म दुर्वासा ऋषि के वरदान के कारणवश हुआ था क्योकि कर्ण की माता कुंती जब कुंवारी थी तब दुर्वासा ऋषि उनके महल में आये और माता कुंती ने लगातार एक साल तक उनकी सेवा की और इसी सेवा भाव से प्रसन्न होकर महान ऋषि ने उन्हें यह कर्ण जैसे पुत्र होने का वरदान दिया था | लेकिन लोक लाज के भय से वह उसे गोद नहीं ले सकती थी जिसकी वजह से उन्होंने कर्ण को एक बक्से में बंद करके गंगा में बहा दिया | बहता हुआ वह अधिरथ और राधा के पास जा पहुंचा जो की महाराज धृतराष्ट्र का सारथी था तब उन्होंने कर्ण को गोद लिया और उसका पालनपोषण किया |
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कर्ण के श्राप और मौत का कारण
कर्ण का पालनपोषण एक अधिरथ के द्वारा हुए जाने के कारणवश पुरे संसार में लोग उन्हें एक अधिरथ के नाम से ही जाने जाते थे | कर्ण की शुरू से रूचि युद्ध में हुआ करती थी इसीलिए उनके पिता अधिरथ ने उन्हें युद्ध की शिक्षा के लिए द्रोणाचार्य के पास गए जो केवल राजकुमारों के पास गए जो की राजकुमारों को शिक्षा दिया करते थे इसीलिए उन्होंने कर्ण को शिक्षा देने से मना कर दिया | उसके बाद वह भगवन परशुराम के पास गए जो की केवल ब्राह्मणो को ही युद्ध की शिक्षा दिया करते थे लेकिन कर्ण ने उन्हें झूट बताया की वह ब्राह्मण है और उसने शिक्षा प्राप्त की | जब उनके क्षत्रिय होने की बात परशुराम को पता चली तो उन्होए कर्ण को श्राप दिया की “जब उसे मेरे बताई गयी शिक्षा और युद्धनीति की सबसे ज्यादा जरूरत होगी तुम तभी यह सब भूल जाओगे” |
जब परशुराम शब्दभेदी का ज्ञान ले रहे है तब रास्ते में उन्होंने एक बछड़े को मार दिया था जिसकी वजह से बछड़े के मालिक ने उन्हें श्राप दिया की “तुमने असहाय पशु को मारा है ठीक इसी प्रकार तुम्हारी भी मृत्यु होगी, उस वख्त तुम सबसे असहाय होगे और तुम्हारा ध्यान शत्रु पर नहीं कही और होगा” |
एक कथा के अनुसार कर्ण जब रास्ते से गुज़र रहे थे तो तब रास्ते में उन्होंने एक लड़की मिली जो अपने घी से भरे हुए घड़े के फ़ैल जाने की वजह से रो रही थी तब उन्होंने उसके रोने का कारण पूछा | तब उस लड़की ने बताया की उसकी सौतेली माता उसे डाँटेगी इसीलिए उसे उसी घड़े में घी चाहिए तभी करने ने जमीन से मिटटी में से घी को सुखाने के लिए उसे ज़ोर से ज़ोर से दबाने लगे | तभी एक महिला के रोने की करुण ध्वनि सुनाई दी तब उन्होंने अपनी हथेली को खोल कर देखा तो हाथ में धरती माता थी तब उन्होंने कर्ण को श्राप दिया की “जिस प्रकार तुम मुझे अपने हथेली में जाकड रखे हो ठीक उसी प्रकार युद्ध में तुम्हारे रथ के पहियों को जकड लुंगी” |
इन्ही तीनो श्रापो की वजह से महाभारत के युद्ध में कर्ण की मृत्यु हुई |
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