Kans Vadh Ki Kahaani : वेदो के अनुसार महाभारत के बेहद रूचि रखने वाली अनेक लीलाये प्रसिद्ध है जिनमे से एक कंस वध की भी है जब भगवान श्री कृष्णा जो की भगवान विष्णु के अवतार थे उन्होंने ही कंस का वध किया था | कंस श्री कृष्णा के मामा थे इसीलिए हम आपको कंस के वध के सम्बन्ध में कुछ अभूतपूर्व जानकारी देते है जिस जानकारी के जरिये आप जान सकते है कंस का वध कब हुआ था ? किस तरह से हुआ था ? इसके बारे में पूरी जानकारी पाने के लिए हम आपको बताते है जिसकी मदद से आप कृष्णा द्वारा कंस वध के बारे में जान सकते है |
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महाभारत कृष्ण लीला
जैसे हर भाई अपनी बहन से प्यार करता है वैसे ही कंस भी अपनी बहन देवकी से अपनी जान से भी ज्यादा प्यार करता था | इसीलिए उन्होंने देवकी का विवाह महाराज वासुदेव से करवाया लेकिन जब कंस अपनी बहन देवकी को विदाई देने के लिए आ रहे थे तब आकशवाणी हुई की हे कंस तुम्हारा वध देवकी के सांतवे पुत्र के हाथो होगा | तब कंस को यह आकाशवाणी सही लगी और इसीलिए उन्होए देवकी को मारने की योजना बनायी |
तब राजा वसुदेव ने कंस से विनती की कि वे देवकी का वध न करे अगर वह चाहे तो वह अपनी हर संतान के पैदा होते ही उस संतान को उन्हें सौंप देंगे | कंस वासुदेव कि इस बात से प्रभावित हुए और वह उनकी बात को मान गए और उन्होंने वासुदेव और देवकी को कारगर में डाल दिया | और देवकी कि हर एक संतान कि मृत्यु कंस के हाथो से ही हुई इस तरह से वह पाप एक बहुत बड़ा भागीदार बन चुका था |
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कंस वध की पौराणिक कथा
उसके बाद भगवान विष्णु ने अपने आंठवे अवतार कृष्णा के पृथ्वी पर आने का समय बता सभी देवताओ को बता दिया और उन्होंने देवी योगमाया कि मदद से देवकी के गर्भ को रोहिणी के गर्भ में स्थापित कर दिया जो कि वासुदेव कि पहली पत्नी थी और उनका नाम था बलराम | खुद देवकी के गर्भ में श्री कृष्णा के अवतार के रूप में आ गए | उसके बाद जब कृष्णा पैदा हुए तब कारगर के सभी सिपाही गहरी नींद में थे और कारगर के दरवाज़े अपने आप खुल चुके थे | तब वह श्री कृष्णा को अपने मित्र नन्द को गोकुल में जाकर दे आये तब श्री कृष्णा का पालन पोषण राजा नन्द और माता यशोदा द्वारा ही किया गया |
उसके बाद कंस ने कई बार श्री कृष्णा को मारने कि योजना बनायीं लेकिन वह हर बार विफल ही रहते थे यह देख कर उन्होंने एक बार अपने मंत्री अक्रूर को कृष्णा और बलराम को योजना बना कर कंस के यहाँ लाने के लिए भेजा तब जैसे ही अक्रूर गोकुल पहुंचे तब श्री कृष्णा जी समझ गए कि उनके जीवन का एक महत्वपूर्ण चरण और कंसवध समीप आ चुका है | इसीलिए उन्होंने गोकुलवासियों के ना चाहते हुए भी अक्रूर के साथ जाने कि इच्छा जताई |
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कृष्ण द्वारा कंस वध
जब श्री कृष्णा अपने बही बलराम को लेकर अक्रूर के साथ कंस के राज्य में पहुँच गए तब कंस ने योजना बनायीं और पागल हाथी को बलराम कृष्णा कि हत्या करने के लिए उनके ऊपर छोड़ दिया | लेकिन हठी का प्रहार उल्टा ही साबित हुआ वह भगवान् श्री कृष्णा के सामने पल भर भी टिक न सका और उन्होंने अपनी तलवार एक प्रहार से ही हठी कि सुण काट डाली और हाथी को जमीन पर मूर्छित कर दिया | उसके बाद कंस ने बलराम और कृष्ण को युद्ध के लिए मल्ल युद्ध के लिए ललकारा जिस युद्ध का मतलब होता है कि जो इस युद्ध में हारता है उसकी मृत्यु निश्चित है | कंस कि तरफ से इस युद्ध में राक्षसों के कुशल योद्धा मुष्तिक और चाणूर भाग ले रहे थे उसके बाद युद्ध प्रारम्भ हुआ और श्री कृष्णा ने चाणूर और बलराम ने मुष्तिक को मार गिराया |
उसके बाद सब लो यह देख कर हैरान हो गए और श्री कृष्णा ने कंस को ललकारा कि हे कंस मामा आपके पापो का घड़ा भर चुका है और आपकी मृत्यु का समय नज़दीक आ चुका है | वहाँ उपस्थित लोग चिल्लाने लगे कि कंस को मार डालो क्योकि कंस के अत्याचार सभी लोग परेशान थे | उसके बाद श्री कृष्णा ने कंस के पापो को उन्हें याद दिलाया और कहा कि जिस तरह से तुमने अपने पिता महाराज उग्रसेन को बंदी बनाया, देवकी और वासुदेव को बंदी बना कर उन सारे पुत्रो की मृत्यु की इतने पाप करके तुम्हरा पृथ्वी पर समय पूरा हो चुका है | इतना कह कर भगवान श्री कृष्ण ने सुदर्शन चक्र से कंस का गला काट दिया और इस तरह से कंस का वध हुआ |
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