उत्पन्ना एकादशी | व्रत कथा इन हिंदी : पुराणों के अनुसार माना जाता है की एकादशियो का व्रत हिन्दू धर्म में बहुत महत्त्व रखता है एकादशी के व्रत में भगवान विष्णु की पूजा की जाती है | उन्ही में से एक एकाद्शी मार्गशीर्ष मास की होती है जिसका शास्त्रों में बहुत महत्व होता है शास्त्रों के अनुसार एकादशियो का व्रत इसी एकादशी के व्रत से शुरू हुआ हुआ था | इसी दिन भगवान विष्णु ने एक देवी की उत्पत्ति की जिसका नाम एकादशी रखा गया तभी से इस एकादशी के व्रत को हम उत्पन्ना एकादशी के व्रत के नाम से जानते है | इसीलिए हम आपको उत्पन्न एकादशी के व्रत के बारे में जानकारी देते है की इस व्रत को किस प्रकार से रखना चाहिए व इस व्रत का क्या महत्व है ? और क्या है इसकी व्रत विधि ?
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एकादशी कब है ?
Ekadashi Kab Hai : शास्त्रों के अनुसार इसी दिन से एकादशी के व्रत की शुरुआत हुई थी जिस दिन से इस व्रत की शुरुआत हुई थी हिंदी पंचांग के अनुसार वह दिन मार्गशीर्ष माह का कृष्णा पक्ष था | जो की अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार हर बार अलग-2 तारीख को पड़ता है उसी प्रकार साल 2020 में उत्पन्ना एकादशी 14 नवम्बर को है और इसी दिन व्रत भी रखा जायेगा |
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व्रत विधि
Vrat Vidhi : यदि आप उत्पन्ना एकादशी की व्रत विधि जानना चाहते है तो इसके लिए आप नीचे बताये गए तरीको को आजमा सकते है जिससे की आपका व्रत सफल होता है :
- इस एकादशी का व्रत दशमी तिथि से प्रारम्भ होता है और द्वादशी की सुबह तक चलता है |
- एकादशी के दिन चावल तथा किसी प्रकार का अन्न ग्रहण नहीं करना चाहिए |
- इस व्रत को करने से अश्वमेघ यज्ञ करने का पुण्य मिलता है |
- एकादशी के दिन अपने सुबह प्रातः स्नान करके व्रत का संकल्प लेना चाहिए |
- उसके बाद भगवान विष्णु की पूजा 16 प्रकार की सामग्रियों से करनी चाहिए तथा रात्रि के समय में दीपदान भी करना चाहिए |
- उसके बाद एकादशी की रात्रि को भजन कीर्तन का आयोजन करना चाहिए |
- अगले दिन द्वादशी को ब्राह्मणो को भोजन करवा कर खुद अन्न ग्रहण करना चाहिए |
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उत्पन्ना एकादशी व्रत कथा व महत्व
इस कथा का प्रारम्भ भगवान श्री कृष्णा द्वारा युधिष्ठिर को बता कर किया जाता है : पुराणों के अनुसार सतयुग में एक मुर नामक महान भयंकर राक्षस था | उसने देवलोक में सभी देवताओ से युद्ध किये और अपने बल से सभी देवताओ पर जीत प्राप्त की उस राक्षस में इतना बल था की कोई भी देवता उसके सामने टिक नहीं सका | उसने सभी देवताओ को मृत्यु लोक जाने के लिए विवश कर दिया उस राक्षस के डर से सभी देवता भगवान शिव के पास कैलाश पर्वत जाते है और वहां जाकर अपनी समस्या विस्तार से बताते है |
भगवान शिव उन सभी देवताओ की समस्याओ को सुन कर उन्हें भगवान विष्णु की शरण में जाने की सलाह देते है और कहते है की इस समस्या का हल केवल भगवान विष्णु के पास ही है तो आप लोगो का वहां जाना उचित रहेगा | सभी देवता उनकी बाते मान लेते है और क्षीर सागर में भगवान विष्णु के पास जाकर उन्हें अपनी गाथा विस्तार से बताते है की किस तरह से मुर नामक राक्षस ने पूरी पृथ्वी व देव लोक में हाहाकार मचा रखा है | उनकी पूरी गाथा सुनने के बाद भगवान विष्णु उनकी रक्षा करने के लिए राज़ी हो जाते है और स्वयं ही मुर नामक राक्षस से युद्ध करने के लिए उनके पास जाते है |
महा बलशाली मुर और भगवान विष्णु बलवानो के बलवान थे इसीलिए दोनों के बीच एक भयंकर युद्ध शुरू हो जाता है दोनों एक दूसरे से अपने शक्तिशाली अस्त्र-शास्त्रों से एक-दूसरे के ऊपर हमला करते है | लेकिन दोनों महा बलवान होने के कारणवश इस युद्ध में न ही तो कोई जीत रहा था न कोई हार रहा था यह युद्ध कई वर्षो तक चलता रहता है | उसके बाद एक दिन बीच में अचानक भगवान विष्णु को निद्रा आती है और वह विश्राम के लिए बद्रिकाश्रम में हेमवती नामक गुफा में चले गए |
उसके बाद वह दानव भगवान विष्णु के पीछे-2 उस गुफा में घुस गया और सोचने लगा की अगर मने सोते हुए ही विष्णु को मार दिया तो मै विश्व विजेता बन जाऊंगा और कोई यह पूरी सृष्टि तथा सभी देवता मेरे ग़ुलाम बन जायेंगे | जैसे ही उसने भगवान विष्णु के ऊपर आक्रमण किया भगवान विष्णु के अंदर से एक बेहद खुबसुआरत कन्या उत्पन्न हुई और वह उस असुर से युद्ध करने लगी | यह युद्ध भी काफी दिनों तक चलता रहा अंत में उस कन्या ने उस राक्षस को मार गिराया | उसके बाद जब भगवान विष्णु की निद्रा टूटी तब उस कन्या ने उन्हें सब कुछ बताया तब उस कन्या से प्रसन्न होकर उन्होंने वर मांगने को कहा |
वह कन्या बोलती है की मै आपका ही एक रूप हूँ इसीलिए जब कलयुग में कोई व्यक्ति मेरा उपवास करे तो उसके सभी प्रकार के पाप नष्ट हो जाए | भगवान विष्णु ने तथास्तु कहा और कहा की आज से लोग तुम्हे देवी एकादशी के नाम से जानेंगे और तुम्हारे व्रत मात्र से ही उस व्रतधारी के सभी पाप नष्ट हो जायेंगे और तुम्हरा यह व्रत मेरे लिए अत्यधिक प्रिय होगा | इस तरह से देवी एकादशी की उत्पत्ति होती है और उसी दिन से एकादशी के व्रत प्रारम्भ हो जाते है |
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