इतिहास

आखिर क्यों करना पड़ा हनुमानजी को अपने ही पुत्र से युद्ध

Akhir Kyo Karna Pada Hanumanji Ko Apne Hi Putra Se Yudh : पुरे विश्व में शायद ही कोई ऐसा होगा जो भगवान श्री राम का नाम नहीं जनता होगा भगवन श्रीराम त्याग और धर्मप्रिय थे | रामायण में भगवान राम और रामभक्त हनुमान जी के बारे में हमने कई किस्से सुने होंगे लकिन क्या आपको पता है की अपने जीवन काल में हनुमान जी ने अपने प्रिय पुत्र मकरध्वज से भी युद्ध किया था लेकीजन वह युद्ध क्यों किया उसके पीछे क्या कारण था ? ऐसी क्या बात थी जिसके लिए उन्हें अपने बेटे से युद्ध करना पड़ा इसी जानकारी के लिए आप हमारी इस पोस्ट को पढ़े जिसके माध्यम से आपको इसके बारे में जानकरी मिलती है की वो क्या किस्सा था की हनुमान जी ने अपने एकलौते पुत्र को मारा |

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कैसे बने हनुमान जी पंचमुखी

यह बात हम सभी जानते है की महाबली हनुमान बचपन से बालब्रह्मचारी थे और उन्होंने अपने जीवन कल में कसी से भी शादी नहीं की थी | लेकिन फिर भी उनका पुत्र कैसे हो गया ? इस बात का अचम्भा खुद पवनपुत्र हनुमान को भी हुआ इसके पीछे भी एक किस्सा है |

जब लंका युद्ध चल रहा था तब राम और लक्ष्मण की सुरक्षा की जिम्मेदारी हुनमान ने खुद अपने ऊपर ली की अपने स्वामी की रक्षा मै खुद करूँगा | तभी पाताल लोक के महा पराक्रमी राजा अहिरावण को रावण द्वारा राम और लक्ष्मण को ख़त्म करने के लिए भेजा गया लेकिन उनकी सुरक्षा के लिए हनुमान जी थे जो की रात भर उनकी सुरक्षा कर रहे थे | अहिरावण जो की पाताल लोक का राजा था उसके पास मायावी शक्तिया थी इसीलिए वह हनुमान को धोखा देकर कुटिया में घुस कर राम और लक्ष्मण को बंदी बना कर पाताल लोक ले गया |

और हनुमान जी पाताल लोक चले गए और अहिरावण से मिले लेकिन अहिरावन ने माँ भिवानी के पास पांच दिशाओं में पांच दीपक जलाये हुए थे| इन पांचो दीपकों को एक साथ बुझाने पर ही अहिरावन का वध हो सकता था | इसलिए इन पांच दीपकों को बुझाने के लिए हनुमान जी को पांच मुख धारण करने पड़े उत्तर दिशा में वराह मुख, दक्षिण दिशा में नरसिंह मुख, पश्चिम में गरुड़ मुख, आकाश की तरफ हयग्रीव मुख एवं पूर्व दिशा में हनुमान मुख। यह धारण करके उन्होंने अहिरावण का वध किया | श्रीराम और लक्ष्मण को मुक्त कराने में सफल हुए तब श्रीराम के कहने पर मकरध्वज को पाताल लोक का राजा बनने की घोषणा भी हनुमान द्वारा की गयी |

आखिर क्यों करना पड़ा हनुमानजी को अपने ही पुत्र से युद्ध

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हनुमान को पुत्र प्राप्ति कैसे हुई

हनुमान जब पाताल लोक गये तो पाताल लोक के द्वार पर आधा वानर जैसा दिखने वाला एक प्राणी मिला | हनुमान ने जब उनका परिचय उनसे मानेगा तब उसने बताया की मै मकरध्वज हु इस पाताल लोक का द्वारपालक और महावीर हनुमान का एकलौता पुत्र इस बात को सुनकर हनुमान चौक उठे और उन्होंने आश्चर्यकजकित होकर पूछा की हनुमान तो मै ही हूँ लेकिन मै तो बालब्रह्मचारी हु तो तुम मेरे पुत्र कैसे हो सकते हो |

तब मकरध्वज ने बताया की हे पिता एक बार आप जब लंका को जला रहे थे तो आपके शरीर पर बहुत पसीना आ चुका था और पूँछ में आग भी लगी हुई थी इसीलिए आप उस गर्मी से मुक्ति पाने के लिए और पूँछ की आग को बुझाने के लिए समुन्द्र में डुबकी लगायी | उसी वक़्त आपके शरीर से निकलने वाला पसीना समुन्द्र में गिरा जिसे की एक मछली ने निगल लिया जब अहिरावण द्वारा उस मछली को पकड़ कर उसका पेट फाड़ा गया तो उसके गर्भ से मै निकला | तभी अहिरावण मेरे गुरु ने मुझे पाताल लोक का द्वारपालक बना दिया |

इतना सुनकर हनुमान जी को उनकी बात पर विश्वास नहीं हुआ तब उन्होंने अपने देवता श्री राम के नाम को जप करके इस बात की सत्यता का पता लगा तो सच्चाई यही निकली | तब हनुमान ने मकरध्वज को बताया की अहिरावण मेरे प्रभु श्रीराम और उनके बही लक्ष्मण को यहाँ बंदी बना कर ले आये इसीलिए मुझे उन्हें छुड़ाना है तो कृपया करके आप मेरा रास्ता छोड़ दे | इतने में मकध्वज बोलै की पिताश्री जैसे श्रीराम आपके प्रभु है वैसे ही अहिरावण मेरे भी प्रभु है मै उन्हें धोका नहीं दे सकता आपको अंदर जाने के लिए मुझसे युद्ध करना पड़ेगा | तब हनुमान और मकध्वज में घमासान युद्ध हुआ और युद्ध में महाबली की जीत हुई |

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