Ahoi Ashtami Vrat Vidhi Katha Evam Mahatv : अहोई अष्टमी हिन्दू धर्म में के प्रमुख त्योहारों में से एक व्रत होता है जिस व्रत में महिला अपने पुत्र की लम्बी आयु के व्रत रखती है और रात में समय तारे निकलने के विधिविधान से पूजन करके इस व्रत को तोड़ती है | अहोई अष्टमी का व्रत केवल वह माताएं रखती है जिन माताओ पुत्र प्राप्ति संतान के रूप में होती है इसीलिए यह व्रत हमारे लिए बहुत मायने रखता है और इस व्रत को करने से माता के पुत्र को लम्बी आयु का वरदान मिलता है | इसीलिए हम आपको अहोईअष्टमी के व्रत के बारे में जानकारी देते है की यह व्रत क्यों रखा जाता है या इस व्रत का क्या महत्व है और इस व्रत में किस तरह से पूजा की जाती है |
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अहोई अष्टमी 2020
Ahoi Ashtami 2020 : हिन्दू धर्म की मान्यताओं के आधार पर कार्तिक माह की कृष्ण पक्ष की अष्टमी को अहोई अष्टमी का व्रत रखा जाता है और यह करवाचौथ के चार दिन बाद और दीपावली से 7 दिन पहले मनाया जाता है | इस बार यानि की 2020 में यह व्रत 12 अक्टूबर के दिन रखे जाने का प्रावधान है |
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अष्टमी पूजा | व्रत विधि
Ashtami Puja : अष्टमी के दिन किस प्रकार से व्रत रखते है इसके बारे में जानकारी पाने के लिए आप नीचे बताई गयी जानकारी को पढ़े और पुरे विधि विधान के साथ पूजा करे जिससे की इस आप इस व्रत को सफल बना सकते है :
- अष्टमी के दिन प्रातः व्रती को जल्दी उठ कर स्नान करना चाहिए |
- इस दिन निर्जल व्रत का प्रण लेना चाहिए |
- इस दिन शाम को अहोई माता का चित्र बना कर उसकी पूजा की जाती है |
- चौक बना कर उस पर सई व अहोई माता का चित्र रखा जाता है |
- एक कलश में पानी भर कर चौकी के पास रखा जाता है जिस पानी से अपने पुत्र को दीपवाली के दिन माता नहलाती है |
- उसके बाद आसमान में तारे निकलने के बाद विधिविधान से इसकी पूजा की जाती है और अहोई अष्टमी की कथा सुनी जाती है |
- उसके बाद तारो को अर्घ्य देकर इस व्रत को तोडा जाता है |
अहोई अष्टमी कथा | अहोई माता की कथा
Ahoi Ashtami Katha | Ahoi Mata Ki Katha : प्राचीन काल में एक साहूकार रहता था जिसके सात पुत्र और एक पुत्री थी उस समय दीपावली का त्यौहार नज़दीक था और घर में साफ़ सफाई के लिए रंग रोगन करना था जिसके लिए घर की सभी स्त्रियां जंगल में मिटटी खोदने जाती है वही से वह कुदाली से जब मिटटी खोद रही होती है तो कुदाली एक स्याह के बच्चे को लग जाती है और वह मर जाता है | और वह स्याह गुस्से में आकर उसकी गलती के लिए साहूकार के पूरे परिवार को संतान शोक का श्राप दे देती है |
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अहोई अष्टमी की कहानी व महत्व
Ahoi Ashtami Ki Kahaani : उसके बाद साहूकार के घर में जो भी संतान पैदा होती है उसकी मृत्यु हो जाती है इस पाप से मुक्ति पाने के लिए साहूकार एक ज्ञानी पंडित से इसका समाधान पूछता है तब वह पंडित उन्हें अष्टमी का व्रत करने की सलाह देता है | तभी वह दीपावली से पहले की अष्टमी के दिन के व्रत को पूरे श्रद्धा भाव से करती है और उस दिन अहोई अष्टमी का ही दिन था | उसके बाद साहूकार के घर में जो भी संताने हुई वह संतान जीवित हुई तभी से इस दिन को अहोई अष्टमी एक व्रत के रूप में जाना जाता है |
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